Black Hole Tragedy
Black Hole Tragedy यानिकी काल कोठरी की घटना भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है। ब्लैक होल त्रासदी एक ऐसी घटना है जो भारतीय इतिहास के अंधेरे पक्ष को दर्शाती है काल कोठारी की घटना कलकत्ता में हुई ।
बंगाल और धीरे-धीरे शेष भारत को उपनिवेश बनाने के उद्देश्य से 1756 में अंग्रेजों ने फोर्ट विलियम की सैन्य रक्षा को मजबूत करना शुरू कर दिया। ऐसा करने में, उन्होंने बंगाल के आंतरिक राजनीतिक और सैन्य मामलों में बहुत हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था जो की बंगाल के नवाब, सिराज-उद-दौला को इस तरह के अत्यधिक हस्तक्षेप से गवारा नहीं था और उन्होंने इसे बंगाल की संप्रभुता की रक्षा के लिए भविष्य में होने वाले खतरे के रूप में देखा।
उन्होंने अंग्रेजों द्वारा चलाई जा रही सैन्य कार्रवाइयों को रोकने का आदेश दिया परन्तु अंग्रेजों ने उनकी बात नहीं मानी। परिणामस्वरूप, अंग्रेजों के अत्याचारों पर अंकुश लगाने के लिए, बंगाल के नवाब ने किले पर हमला किया20 जून, 1756 ई. को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया।
इसे कब्ज़े में लेने का कारण यहाँ पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की मुख्य शक्ति का निहित होना था ।कलकत्ता में अधिकांश अंग्रेज़ पराजित होने पर जहाज़ों द्वारा नदी के मार्ग से भाग चुके थे और जो थोड़े से भागने में असफल रहे, वे बन्दी बना लिये गये। उन्हें क़िले के भीतर ही एक कोठरी में रखा गया था, जो ‘कालकोठरी’ नाम से विख्यात है । इस कोठरी को ‘ब्लेक हॉल'(Black Hole) के नाम से भी जाना जाता है।
कलकत्ता के ब्लैक होल(Black Hole Tragedy) की घटना
सिराजुद्दौला द्वारा कलकत्ता पर क़ब्ज़ा करने और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना द्वारा परिषद के एक सदस्य ‘जॉन जेड हॉलवेल‘ के नेतृत्व में समर्पण करने के बाद घटी घटना में नवाब ने शेष बचे ब्रिटिश सैनिकों और अन्य यूरोपीय लोगों को एक कोठरी में बंद कर दिया था, जिसमें अनेक बंदियों की मृत्यु हो गई थी।
कहा जाता है की नवाब इस काल कोठरी की बनावट के बारे में अनभिज्ञ था । ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आदर्शीकरण के लिए एक सनीखेज मुक़दमा और विवाद का कारण बनी।
ऐसा माना जाता है कि, 20 जून, 1756 ई. की रात को बंगाल के नवाब ने 146 अंग्रेज़ बंदियों, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लंबे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बन्द कर दिया था। बंद करने के बाद, जब 23 जून को प्रातः कोठरी को खोला गया तो, उसमें 23 लोग ही जीवित पाये गये।
अंग्रेजों का कहना था कि इतनी कम जगह वाली कालकोठरी में एक साथ इतने सारे लोगों को बंदी बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं थी, जिन्हें जबरन भीड़भाड़ वाले स्थान पर धकेल दिया गया था। ब्रिटिश रिकॉर्ड्स ने कहा कि अगली सुबह तक कैदियों ने प्रतिकूल परिस्थितियों में दम तोड़ दिया था, जिसका मुख्य कारण दम घुटना, असहनीय गर्मी और भीड़ का एक दुसरे को कुचलना था।
काल कोठरी की घटना(Black Hole Tragedy) की विश्वश्नियता पर शंशय
अंग्रेजों के अनुसार, में बंगाल के नवाब ने 146 अंग्रेज़ बंदियों, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लंबे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बन्द कर दिया था। 20 जून, 1756 ई. की रात को बंद करने के बाद, जब 23 जून को प्रातः कोठरी को खोला गया तो, उसमें 23 लोग ही जीवित पाये गये जिसमे ‘जॉन जेड हॉलवेल‘ भी शामिल थे जिन्हें ही इस घटना का रचयिता माना जाता है। इस घटना की विश्वसनीयता को इतिहासकारों ने संदिग्ध माना है, और इतिहास में इस घटना का महत्व केवल इतना ही है, कि अंग्रेज़ों ने इस घटना को आगे के आक्रामक युद्ध का कारण बनाये रखना चाहते थे ।
काल कोठरी की घटना(Black Hole Tragedy) के परिणाम
कलकत्ता के ब्लैक होल(Black Hole Tragedy) की घटना को प्लासी युद्ध की भूमिका माना जाता है। रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व अंग्रेज़ सेना जी अधिकारियों ने के में कलकत्ता भेजा, । इस सैन्य अभियान में ‘एडमिरल वाट्सन‘, क्लाइव का सहायक था। अंग्रज़ों द्वारा 2 जनवरी, 1757 ई. को कलकत्ता पर अधिकार करने के बाद उन्होंने नवाब के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषण कर दी। परिणास्वरूप नवाब को क्लाइव के साथ 9 जनवरी, 1757 ई. को अलीनगर की सन्धि करनी पड़ी। सन्धि के अनुसार नवाब ने अंग्रेज़ों को वह अधिकार पुनः प्रदान किया, जो उन्हें सम्राट फ़र्रुख़सियर के फ़रमान द्वारा मिला हुआ था, और इसके साथ ही तीन लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिया।
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क्लाइव का षड्यंत्र
अब रॉबर्ट क्लाइव(Robert Clive) ने कूटनीति के सहारे सिराजुद्दौला के उन अधिकारियों को अपनी ओर मिलाना चाहा, जो सिराजुद्दौला से असंतुष्ठ थे। रॉबर्ट क्लाइव योजना ने साहूकार जगत सेठ, मानिक चन्द्र, कलकत्ता का व्यापारी राय दुलर्भ, सेनापति मीर ज़ाफ़र,तथा अमीन चन्द्र के साथ मिलकर एक षडयंत्र रच कर सिराजुद्दौला को हटाने का प्रयत्न किया। मार्च, 1757 ई. में अंग्रज़ों ने फ़्राँसीसियों से चन्द्रनगर के जीत लिया। अंग्रेज़ों के इन समस्त कृत्यों से नवाब का क्रोध सीमा से बाहर हो गया, जिसकी अन्तिम परिणति ‘प्लासी के युद्ध’ के रूप में हुई।
1915 ई. में जे.एच. लिटल ने हॉलवेल की गवाही और वर्णन को अविश्वसनीय बताते हुए स्पष्ट किया कि, इस घटना में नवाब की भूमिका सिर्फ़ लापरहवी बरतने भर की थी। इस प्रकार इन विवरणों ने संदेह को जन्म दिया। 1959 ई. में अपने एक अध्ययन में बृजेन गुप्ता ने उल्लेख किया है कि, यह घटना घटी अवश्य, लेकिन काल कोठरी में बंदियों की संख्या लगभग 64 थी, जिनमें से 21 जीवित बचे थे।