जानें क्या था पझौता आन्दोलन(Pajhota Movement) 1942?

पझौता आन्दोलन (Pajhota Movement)-1942 ?

पझौता आन्दोलन (Pajhota Movement)-1942 ?

Pajhota Movement

क्या था पझौता आन्दोलन(Pajhota Movement)

पझौता आन्दोलन(Pajhota Movement)1942 में हुए ‘ भारत छोडो आन्दोलन‘ का ही विस्तार था यह आन्दोलन भारत छोडो आन्दोलन के साथ ही हिमाचल प्रदेश की सिरमौर रियासत में शुरू हुआ।

पझौता आन्दोलन (Pajhota Movement) के दौरान हिमाचल प्रदेश की सिरमौर रियासत के महाराज राजेंद्र प्रकाश थे . रियासत में नोकरशाही का शासन था । द्वितीय विश्वयुद्ध(World War-II) अंग्रेजों की सहायता के लिए राजा ने प्रजा में से नोजवानो को जबरन सेना में भरती करना शुरू कर दिया । किसानों को खुले बाज़ार में फसलें बेचने की आज़ादी नहीं थी और कई तरह के कर भी लगाये गए थे।

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पझौता आन्दोलन(Pajhota Movement) किसान सभा का गठन

पझौता आन्दोलन (Pajhota Movement)के मुख्य नेता वैद सूरत सिंह और उनकी पत्नी सुनहरी देवी थे। अक्टूबर, 1942 इसवी में सिरमौर रियासत में पझौता के प्रताड़ित और जागरूक किसानों ने जदोल-टपरोली में किसान सभा की स्थापना की । सभा की कार्यकारिणी सदस्य लक्ष्मी सिंह प्रधान, टपरोली में गुलाब सिंह, जदौल के चुनचु मियां, पैन कुफ्फर के मेहर सिंह, मदन सिंह, अंतर सिंह, कतोगादा के वैद सूरत सिंह बघोल के जालम सिंह , लेउ के कही राम, नेरी के कलि राम तथा पदम् राम थे।

वैद सूरत राम को किसान सभा का सचिव बनाया गया था । सभा के सभी सदस्यों ने पानी के लोटे में से नमकीन पानी बनाकर दायित्व निभाने की शपथ ली थी । किसान सभा ने असहयोग आन्दोलन और सत्याग्रह भी शुरू कर दिया (Pajhota Movement) ने राजा के कर्मचारियों की घूसखोरी और तानाशाही के विरोध में शशस्त्र आन्दोलन शुरू किया।

पझौता आन्दोलन(Pajhota Movement) में किसानो की मांगें

पझौता आन्दोलन में किसान सभा ने सिरमौर की रियासती सरकार से ये मांगे रखी –

  • जबरन बेगार प्रथा की समाप्ति ।
  • नए स्कूल और डाकघर आदि का निर्माण ।
  • बिना लाइसेंस हथियार रखने की छुट।
  • महिला रीत-टेक्स की समाप्ति ।
  • आलू की फसल के खुले व्यापर के क़ानून ।
  • भ्रष्ट कर्मचारियों का तबादला।
  • प्रजा द्वारा निर्वाचित मंत्रिमंडल की स्थापना करना।

पझौता आन्दोलन में पझौता के किसानो की मांग थी की राजा स्वयं इस इलाके में आकर लोगों की समस्याएं और उनकी मांगे सुने परन्तु सिरमौर के शासक एक अकुशल और आराम परस्त थे। रियासती सरकार ने दिसम्बर,1942 में डी.एस.पी और अन्य सिपाहियों को आन्दोलन को दबाने के लिए भेजा।

पझौता आन्दोलनकारियों(Pajhota Movement) पर सैन्य कार्यवाही

पझौता आन्दोलन कारियों ने सरकारी अशिकारियों को काम नहीं करने दिया तथा किसान सभा के सदस्यों ने जिनमे चूंचूं मियां, मदन सिंह, वैद सूरत सिंह, गुलाब सिंह, मेहर सिंह, राम दास आदि प्रमुख थे ने लोगों को सरकार के विरुद्ध आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। सरकार ने किसान सभा(पझौता आन्दोलन) के प्रधान, सचिव और कार्यकारिणी के सदस्यों को ‘रिंग लीडेर्स’ का नाम दिया तथा उन्हें समझोते के लिए राजा के दरबार में बुलाया गया परन्तु नेताओं ने दरबार पर बुलावा गिरफ़्तारी की साजिश समझकर दरबार में उपस्थित होने से इनकार कर दिया।

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मई, 1943 को रियासती सरकार ने मेजर एच.एस.बाम.के नेतृत्व में सेना भेजी तथा राजगड क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी गई तथा ‘रिंग लीडर्स’ को 24 घंटे के अन्दर सेना के सामने आत्मसमर्पण करने के आदेश जारी किये । परन्तु इसका परिणाम कुछ भी नहीं निकला। इसीलिए पुरे क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया ।

14 मई, 1943 में फौज और पुलिस ने पुरे क्षेत्र में छापे मारे और लोगों की सम्पति लूट ली और अनाज के भंडारों को जला दिया । 11 जून,1943 में सिपाहियों ने कोटि -माव्गा में आन्दोलनकारी कलि राम के घर पर आग लगा दी और जब गाँव के लोग आग बुझाने के लिए पहुंचे तो सिपाहियों ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चला दी।

इस गोली काण्ड में कतोगादा के कामना राम शहीद हो गए तथा कुछ अन्य लोग भी इसी फायरिंग में घायल हो गए।पझौता आन्दोलन (Pajhota Movement) को दबाने के लिए सैनिकों द्वारा किये गए इस कृत्य में कुल 26 रौंद फायर किये गये थे ।

अन्य 69 आन्दोलनकारी किसानो को दूसरी जगहों से पकड़कर नाहन जेल में बंद कर दिया गया और इनके सहयोगियों और परिवार वालो को भी परेशान किया गया । जुर्माना मनमाने ढंग से वसूल किया गया था और पुलिस ओर फोजी शक्ति के बल पर पझौता आन्दोलन को कुचल दिया गया ।

अतः कहा जा सकता है कि पझौता आन्दोलन (Pajhota Movement) भी अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध हिमाचल प्रदेश की सिरमोर रियासत की आम जनता द्वारा किया गया महत्वपूर्ण आन्दोलन था जो की भारत छोड़ो आन्दोलन की तर्ज पर चला

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