Simon Commission क्या था ?
Simon Commission का गठन 8 नवम्बर 1927 को भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये बनाया गया था। और, Montague Chelmsford Reformation 1919 की जॉच करना इस कमीशन का मुक्ख कार्य था। तथा, इस कमीशन का अध्यक्षता Sir John Simon ने किया था। इसीलिए इस आयोग (Commission) का नाम साइमन कमीशन रखा गया था।
, इस आयोग का मुख्य सुझाव यह था की भारत में एक संघ की स्थापना हो जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासतो में शामिल हों सके। इसके साथ केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन की व्यवस्था हो। तथा, Viceroy और Provincial Government को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हो। और, एक लचीले संविधान का निर्माण किया जा सके।
अब सवाल यह है की, अंग्रेज सरकार संविधान सुधारों की उद्देश्य से अगर साइमन कमीशन को बनाये थे, तो पुरे भारत में इसका विरोध क्यों हुआ था? और, Simon go back एवं साइमन वापस जाओ के नारे क्यों लगे थे। दोस्तों इसे जानने के लिए साइमन कमीशन शुरू होने से पहले की स्थिति के बारे में जानना जरुरी है। चलिए इसे आसान तरीके से समझ ने की कोशिश करते है।
Introduction of the Simon Commission
- 1919 में भारत सरकार की अधिनियम को ब्रिटेन की संसद द्वारा पारित किया गया था जिसे Montague Chelmsford Reformation 1919 के नाम से भी जाना जाता है।और, उस समय Lord Montague भारत सचिव एवं Lord Chelmsford भारत के Viceroy थे।तथा, 1919 में इस अधिनियम द्वारा अगले दस साल बाद एक कमीशन बनाने की बात भी किया गया था।
- जिसमे भारत में उत्तरदाई शासन बेवस्ता की प्रगति की समीक्षा करने के वाद एक रिपोर्ट पेश किया जायेगा और, उस रिपोर्ट में कितना उत्तरदाई शासन बेवस्ता हो पाई है यह बताया जायेगा। लेकिन, बाद में यह साइमन कमीशन के नाम पर 1931 में आने के बजह, 8 नवंबर 1927 में यह कमीशन को भारत में लाया गया था क्यों की 1929 में ब्रिटेन में चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के कारण यह प्रक्रिया को आगे किया गया था।
Simon Commission
- Simon Commission में सात सदस्य का एक दल था जिसमे सभी सदस्य अंग्रेज थे।तथा, इस कमीशन में भारत की और से एक भी व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया था और, यह भारतीयों के लिए बहुत बड़ा अपमान था।
- 1927 में मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था और, उस अधिवेशन में सर्वसम्मति से साइमन कमीशन के बहिष्कार का फैसला लिया गया था।
- इससे पहले चौरी चौरा की घटना के बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया था जिसके कारण भारत में आजा़दी की लड़ाई शिथिल पड़ गया था लेकिन, साइमन कमीशन की गठन के कारन से ही, फिर से आजा़दी की लड़ाई भारत में सक्रिय हो गया था।और, गाँधी जी एवं नहेरु जी ने भी इस कमीशन का विरोध करने का निर्णय लिया था।
- इसके साथ मुस्लिम लीग ने भी साइमन कमीशन का बहिष्कार का फैसला किया था।
- दिसंबर 1927 में मद्रास में कांग्रेस के वार्षिक सत्र में, एक संकल्प पारित किया गया जिसने साइमन कमीशन के बहिष्कार की वकालत की, “हर चरण में और हर रूप में”। राजनेताओं के अन्य गुट भी सूट में शामिल हुए।
- हालांकि, मुस्लिम लीग में, विचारों का विभाजन हुआ था। जिन्ना को आयोग से निकाल दिया था; लेकिन मुहम्मद शफी ने सरकार का समर्थन किया था।
- इस प्रकार 1927 में मुस्लिम लीग के दो भाग थे- एक का नेतृत्व कलकत्ता में जिन्ना के नेतृत्व में हुआ था, जहां उन्होंने आयोग का विरोध किया था, एक अन्य लाहौर में आयोजित किया गया था जो मुहम्मद शफी के नेतृत्व में था, जहां उन्होंने सरकार का समर्थन किया था, इसलिए, मुस्लिम लीग के शफी समूह और मद्रास में एक जस्टिस पार्टी को छोड़कर सभी दल साइमन कमीशन के खिलाफ थे।
Protest in India
- 1927 में भारत के Viceroy Lord Irwin थे।और, उन्होंने ही Simon Commission में किसी भी भारतीयों सदस्य को शामिल न किए जाने के लिए लिखित में कहा था।इसके साथ इसे स्वेत कमीशन भी कहा गया है, क्यों की इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे तथा, 3 फरवरी 1928 को यह कमीशन जब भारत में पहुंचा था तो, Sir John Simon द्वारा एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए,उन्होंने, पुणे, लखनऊ, विजयवाड़ा कोलकाता और लाहौर का दौरा किया,परन्तु, इस दौरे पर उन्हें जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा था,और लोगों ने Sir John Simon को काले झंडे भी दिखाए थे।और, पूरे देश में Simon go back, साइमन वापस जाओ के नारे लगे ।
- इसके साथ लखनऊ में इस विरोध के लिए लाठी चार्ज भी हुई ,जिसमे पंडित जवाहर लाल नेहरू जी और गोविंद वल्लभ पंत जी भी घायल हो गए ।लेकिन, Babasaheb Ambedkar जी ने इस कमीशन का सहयोग किया था। क्यों की Babasaheb इस कमीशन की रिपोर्ट को जानना चाहते थे,आखिर अंग्रेज सरकार ने इस रिपोर्ट में देश की उत्तरदाई शासन बेवस्ता की प्रगति के लिए क्या किया है।
Death of Lala Lajpat Rai
Simon Commission का सबसे ज्यादा ब्यापक विरोध लाहौर में किया गया था।क्यों की 30 अक्टूबर 1928 को जब यह कमीशन लाहौर पहुंचा था तो,नौजवान सभा के सदस्य के साथ लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बड़े पेमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था।जिसमे लाला लाजपत राय जी के साथ भगत सिंह और उनके साथियों भी शामिल थे।और, इस विरोध में अंग्रेज सरकार के अधीक्षक स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया था,तथा, उप अधीक्षक सांडर्स द्वारा जनता तथा युवाओं के ऊपर बेरहमी से लाठीचार्ज किया गया था,और, इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय जी को भी सामना करना पड़ा था,जिसके कारन, वह बुरी तरह से घायल हो गए थे और मरने से पहले उन्होंने कहा था कि,
आज मेरे उपर बरसी हर एक लाठी कि चोट अंग्रेजों की ताबूत की कील बनेगी
आखिरकार: लाठी की प्रहार के बजह से 17 नवंबर 1928 को लाला जी की मृत्यु हो गई थी।
Revenge by Revolutionaries
- लाहौर में अंग्रेज द्वारा अत्याचार और लाला जी की मृत्यु को भगत सिंह और उनके साथियों ने अपने आखो से देखा,और, क्रांतिकारियों की दृष्टि में यह राष्ट्र का अपमान था, जिसका प्रतिशोध लिया जाना जरूरी था।इसीलिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल, दुर्गा भाभी आदि एकत्रित हुए,और,17 दिसम्बर 1928 को उप-अधीक्षक सांडर्स को राजगुरु और भगत सिंह ने गोली मरकर हत्या कर दी थी।और, इस हत्याकांड के बजह से ही अंग्रेज सत्ता कांप उठी थी।
- उसके पश्चात, भगत सिंह, राजगुरु और दुर्गा भाभी अंग्रेजो को चकमा देते हुए कोलकाता निकल गए,और, कोलकाता में भगत सिंह अनेक क्रांतिकारियों से भी मिले थे।तथा, Central Assembly में बम फेंकने का विचार भी कोलकाता में ही बना था।जिसके पश्चात Assembly चलने के दौरान भगत सिंह और श्री बटुकेश्वर दत्त ने,Central Assembly के मध्य में कम समता वाली एक एक बम फेंका था,और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाते हुए खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था।
- भगत सिंह का उद्देश्य किसी को घायल करने का नहीं था।उस दिन Central Assembly में “जन सुरक्षा बिल” और “औद्योगिक विवाद बिल” पास होना था,जिसमे युवक आंदोलन को कुचलना और मजदूरों को हड़ताल के अधिकार से वंचित रखना था। इसीलिए भगत सिंह और आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की बैठक में बम धमाका का फैसला लिया गया था।
Conclusion of the Summary
- इसके बाद भगत सिंह और श्री बटुकेश्वर दत्त को लाहौर ले जाया गया,और, भगत सिंह को मियांवाली जेल में रखा गया था। भगत सिंह के ऊपर लाहौर में सांडर्स की हत्या, और Central Assembly में, बम फेंकने का मामला को Tribunal कोर्ट में दर्ज किया गया था और, श्री बटुकेश्वर दत्त के ऊपर भी बम फेंकने का आरोप लगाया गया था। इसके साथ कई क्रांतिकारियों जैसे विजय कुमार सिन्हा, शिव वर्मा,गया प्रसाद, किशोर लाल और जयदेव कपूर को आजीवन कारावास की फैशला सुनाया गया था,तथा, कुंदनलाल को सात साल और प्रेमदत्त को तीन साल की सजा का प्रावधान दिया गया था,और, श्री बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद का दंड,तथा, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी का सजा सुनाया गया था।
Some Important Points
- इससे पहले हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन (HRA) की स्थापना अक्टूबर 1924 में किया गया था।
- रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चन्द्र चटर्जी, चंद्रशेखर आजाद और शचींद्रनाथ सान्याल जैसे,क्रान्तिकारी ने मिलकर कानपुर में इसकी स्थापना की था।
- और, इस पार्टी का उद्देश्य हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के शासन से मुक्त करना था और, इस ऐसोसिएशन के साथ भगत सिंह और उनके साथियों भी जुड़े थे, लेकिन, 1925 में HRA द्वारा काकोरी कांड के बाद यह पार्टी शिथिल पर गया था। , भगत सिंह को भी HRA के साथ साथ अलग से कुछ करने के लिए, आज़ाद, छबील दास, यश पाल और जयपाल आदि ने मिलकर, 1926 में नौजवान सभा को पंजाब में स्थापित किया था।और, इस सभा का उद्देश्य देश में युवा बर्ग की दिल में देशभक्ति की मशाल को जागृत करना था।
- इसके साथ, यह नौजवान सभा ही आगे चलकर के सबसे ज्यादा Simon Commission का विरोध किया था।
- परन्तु, 1928 में HRA को फिर से चंद्रशेखर आज़ाद द्वारा पुनर्गठित किया गया था फिरोज शाह कोटला मैदान पर,और, इस वार HRA का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन यानि HSRA रख दिया गया था।
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