General Knowledge -HUMAYUN AND SHERSHAH SURI

 

मुग़ल साम्राज्य और शेरशाह सूरी 

                                                   सासाराम में शेरशाह का मकबरा 
 

हुमायूँ (1530-1556 AD)

 

बाबर के बाद उसके पुत्र हुमायूँ ने मुग़ल साम्राज्य(Took charge of Mughal Saltnate) को संभाला।

हुमायूँ 30 दिसंबर 1530 को राजगद्दी पर विराजमान हुआ।

बाबर ने मरते वक्त हुमायूँ को अपने छोटे भाईओं के साथ उदारता (Directed by Babar to be polite to his brothers) बरतने के निर्देश दिए।

हुमायूँ ने राज्याभिषेक के पश्चात अपना राज्य (Divided the empire with his brothers)अपने तीन भाईओं (कामरान, अस्करी, और हिन्दाल)में बाँट दिया जो राजनितिक दृष्टि से उसकी सबसे बड़ी भूल थी।

1532 AD में दौहरिया का युद्ध  हुमायूँ  एवं महमूद लोदी के बीच  हुआ।

हुमायूँ ने चुनार का घेरा अफगान नायक शेर खान(Sher Khan) के विरुद्ध डाला था।

1533 में हुमायूँ ने दिल्ली के निकट दीनपनाह (Deenpanah) नामक विशाल दुर्ग की स्थापना की थी।

हुमायूँ ने बंगाल के गौड़ क्षेत्र का जनताबाद (Jantabad) नाम रखा।

हुमायूँ का परम शत्रु शेरशाह सूरी था। 

26 जून 1539 के चौसा के युद्ध में शेर खान ने हुमायूँ को पराजित किया।

इस आधार पर हुमायूँ के शासन काल को दो भागों (His reign can be divided into two parts)में विभक्त किया जा सकता है –

1 1530 -1540 AD
2. 1555-1556 AD

हुमायूँ और शेरशाह के बीचमे बिलग्राम और कन्नौज का युद्ध 1540 AD में हुआ जिसमे हार प्राप्त करने के पश्चात हुमायूँ  को भारत के बाहर  जाने के लिए मज़बूर कर दिया।

बिलग्राम और कन्नौज के युद्ध में हुमायूँ का साथ (His brother accompanied him in these wars) उसके भाईओं ने दिया।

हारने के पश्चात हुमायूँ सिंध चला गया।

हुमायूँ ने शिया मीर बाबा दोस्त की पुत्री हमीदा बानु बेगम(Married to Hamida Baanu Begum) से शादी की।

1555 AD  में हुमायूँ ने लाहौर पर कब्ज़ा किया।

मई 1555 में हुमायूँ ने अफगानो के साथ युद्ध किया।

जून 1555 में सरहिंद का युद्ध(Battle of Sirhind against Afgan Sultan Sikander Sur and Bairam Khan) अफगान सुल्तान सिकंदर सुर एवं बैरम खान के बीच हुआ।

हुमायूँ 23 जुलाई 1555 को दिल्ली(had the chance to rule Delhi Sultnate) की गद्दी पर पुनः बैठा।
हुमायूँ के पुस्तकालय का नाम शेरमंडल था।

हुमायूँ की मृत्यु जनवरी 1556  में , दीनपनाह भवन के पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुई।

हुमायूँ ज्योतिष में विश्वास  (Deep faith in Astrology)रखता था।  वह सोमवार को सफ़ेद, शनिवार को काला एवं रविवार को पीला वस्त्र धारण करता था।

दिल्ली में हुमायूँ ने मदरसा ए बेगम विद्यालय (Opened schools in Delhi)खुलवाया।

 

अकबर ने हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में बनवाया। 

शेरशाह सूरी (1540-1545 AD )

शेर खान का प्रारम्भिक नाम फरीद खान था।

शेर खान के पिता हसन खान जौनपुर के जमींदार (Father was landlord of Jounpur) थे।

वह बिहार के सुल्तान महमूद शाह नूहानी (Mahmud Shah Nuhani) के यहाँ नौकरी करता था।

फरीद को शेर खान की उपाधि नूहानी(Nuhani gave the title of Sher khan to Farid) ने दी।

शेरशाह सूरी हुमायूँ को चौसा के युद्ध में 1540 में हरा कर (Defeated Humayun) दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

शेरशाह सूरी ने दिल्ली सल्तनत पर शासन 1540-1545 AD  तक किया।

चौसा के युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात शेर खान ने अपने को शेरशाह(Gave himself the title of Shershah)  की उपाधि से सुसज्जित किया।

1541 AD  में शेरशाह ने गक्खरों के विरुद्ध अभियान किया।

गक्खर मुगलों की सहायता करते थे।

अपनी उत्तरी पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के लिए उसने रोहतासगढ़ किले(Rohtasgarh Fort) का निर्माण करवाया।

रणथम्भोर के शक्तिशाली किले को अपने अधीन कर अपने पुत्र आदिल खान(Aadil Khan) को वहां का गवर्नर बनाया।

शेरशाह के समय कालिंजर का शासक किरत सिंह(King of Kalinjer was Kirat Singh) था।

शेरशाह की मृत्यु 1545 AD में कालिंजर किले की दिवार से टकराकर लौटे टॉप के गोले से हुई।

मृत्यु के समय शेरशाह ऊक्का(Ukka) नामक आग्नेयास्त्र (Fire Arm)चला रहा था।

उसके द्वारा लगाए गए स्थानीय करो को आबवाब (Local taxes were imposed and were called Aabvaab) कहा गया।

शेरशाह द्वारा भूमि को मापने के लिए 32 अंक वाला सिकंदरिगज़ (Sikanderi Gaz)एवं सन  की डंडी मापक का प्रयोग किया।

शेरशाह के शासनकाल में 23 टक्साले थी।

शेरशाह ने 178 ग्रेन का चांदी  का रूपया एवं 380 ग्रेन का ताम्बे का सिक्का जारी किया।

शेरशाह ने 1700 सरायें एवं चार बड़ी सड़के तथा सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाये।

ग्रांड ट्रंक रोड (Grand Trunk Road was built by Shershah Suri)का निर्माण शेरशाह ने ही करवाया।

कन्नौज के स्थान पर शेरसुर नगर बसाया।

शेर शाह ने पाटलिपुत्र  का नाम पटना रखा।

शेरशाह ने सिक्कों पर अपना नाम अरबी और देवनागरी(Minted his name in coins in Arbi and as well as in Devnagari) लिपि में खुदवाया।

शेरशाह का मकबरा बिहार के सासाराम (Sasaram)में झील के अंदर है।

हुमायूँ द्वारा निर्मित दीनपनाह को तुड़वाकर(Dismentled Dinpanah) उसके अवशेषों से पुराना  किला (Purana Quila)का निर्माण करवाया।

किला ए कहना मस्जिद(Quila- e- Masjid) का निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया।

हुमायूँ की सौतेली बहन गुलबदन  बेगम ने हुमांयुनामा लिखी।

अकबर ने हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में बनवाया।  

 

 

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