Jainism

JAINISM


जैन धर्म (JAINISM )

FOUNDER OF JAINISM

जैन धर्म के धार्मिक ग्रंथो के  अनुसार  जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर (Tirthankars according to Jian religious texts)  थे।

जैन धर्म का संस्थापक ऋषभनाथ(Rishabhnath) को माना  जाता है वे ही प्रथम (First) तीर्थंकर थे।

विष्णु पुराण और भगवत पुराण में ऋषभनाथ को विष्णु का अवतार(Incarnation of Narayan) बताया गया है।

TIRTHANKARS OF JAINISM

जैन धर्म के दो तीर्थंकरों का नाम -अरिस्ठनेमी(Aristhnemi) और ऋषभ (Rishabh)का वर्णन ऋग्वेद Rigved) में भी आता है।

परन्तु अंतिम दो तीर्थंकरों (Parshavnath & Mahavir) के आलावा अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

पार्स्वनाथ बनारस(Banaras) के राजा थे जिन्होंने अपना राज पाठ त्याग दिया।



उनके चार मुख्या उपदेश थे – अहिंसा(Non Injury ), अमृषा(Non lying ) , अचौर्या(Non stealing)) और अपरिग्रह(Non Possession )।  महावीर ने इन सभी को अपनाया तथा  बाद में  साथ ब्रह्मचर्य (Celibacy)भी जोड़ा। 

VARDHMAN MAHAVIRA TIRTHANKAR OF JAINISM 

इनके बचपन का नाम वर्धमान(Vardhmaan) था।

इनका जन्म वैशाली(Bihar) के निकट कुण्डलग्राम(Kundalgram) नामक ग्राम में हुआ  540 BC में हुआ।

इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो की ज्ञातृक क्षत्रिय कुल (Kshatriya Clan)के प्रधान थे माता  त्रिशला (चेतक जो की वैशाली का राजा था की  बहन थी )

इनकी पत्नी का नाम यशोधरा (Yashodara)था तथा पुत्री  का नाम प्रियदर्शनी(Priyadarshani) था (जिसका विवाह बाद में जमाली(Jamali) से हुआ  जो की महावीर के प्रथम शिष्य (First disciple)बने ) .

30 वर्ष की आयु में इन्होने सत्य की खोज(Goal of life) के लिए गृहत्याग किया।

12 वर्ष की गहन तपस्या के पश्चात जम्भिकग्राम(Jambhikgram) ( के समीप ऋजुपलिका नदी  (Rijupalika river)के निकट  एक वृक्ष के निचे इन्हे सर्वोच्च  ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसे कैवल्य(Kaivalya) के संज्ञा दी गई है।

सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात इन्हे केवलिन(Kevlin) , जिन (Jaina), अरिहंत(Arihant) आदि नामो से भी जाना गया।

72 वर्ष की आयु में  466 BC में राजगृह (Rajgriha) के समीप पावापुरी(Pavapuri) में मृत्यु हो गई।

MAIN TEACHING OF JAINISM

अहिंसा पर बल दिया(Non Injury)

वर्ण व्यवस्था (Caste System)को अस्वीकार किया  और समानता(Equality) पर बल दिया।


जैन धर्म का प्रसार-

ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होने अपना पहला उपदेश राजगृह(Rajgriha)  में विचलनचल पर्वत(Vimalanchal Mountain) पर दिया

अजातशत्रु(Ajatshatru),बिंबिसार(Bimbisara), उदयिन(Udayin), चन्द्रगुप्त मौर्य( Chandragupta Maurya) चेतक, कलिंग आदि राजाओं ने जैन धर्म का समर्थन किया।

त्रिरत्न

इनके अनुसार त्रिरत्नों(Triratna) का पालन करके ही मनुष्य निर्वाण  कर सकता है  ये तीन हैं-

1. सम्यक दर्शन- सत्य में विश्वाश

2. सम्यक ज्ञान- सत्य रूप का शंकाविहीन

3. सम्यक आचरण- सुख – दुःख के प्रति समभाव (balance) . 

जैन महासंगतियाँ —

प्रथम संगती            322 BC- से  298 BC तक          पाटलिपुत्र          स्थूलभद्र(Sthulbhadra)  अध्यक्ष  थे।

द्धितीय  संगती         512 AD                                     वल्लभी            देवर्धि क्षमाश्रवण अध्यक्ष थे।

जैन ग्रंथ (परिशिष्ठ पर्वन) के अनुसार मगध में 12 वर्षों के आकाल(Drought)  पश्चात तथा बहुत से जैन भद्रबाहु के नेतृत्व में श्रवणबेलगोला(Karnathaka of that time)चले गए तथा शेष मगध में ही रुक गए और  वापिस लौटने पर स्थानीय लोगो से उनका मतभेद हो गए तथा जैन धर्म दो भागों में बंट (divided) गया

1.  श्वेताम्बर – श्वेत वस्त्र  (White Clad) धारण करने  वाले।  

2.  दिगम्बर –  वस्त्रों का परित्याग (Sky Clad)करने वाले।  

जैन साहित्य 

श्वेताम्बर जैन साहित्य प्राकृत(Prakrit ) भाषा में लिखे गए हैं जिन्हे अर्धमगधी कहा गया जिनके 12 अंग , 12  उप अंग, 10 परिकर्ण , 6 छेदसूत्र ,4 मूलसूत्र और 2 सूत्रग्रंथ हैं।

इनके आलावा महत्वपूर्ण जैन ग्रन्थ -1. कल्पसूत्र (संस्कृत)-  भरदरबाहु, 2. भद्रबाहु चरित  अदि हैं

जैन शिल्प कला

1. दिलवारा मंदिर –  तेजपाल मंदिर, विमलवसहि मंदिर , माउंट अबू (In Rajasthan)

2. गिरनार और पालीताना (Gujrat).

3. पावापुरी मंदिर, राजगृह मंदिर – (Bihar),

4. गुफाएं और कन्दराएँ- हाथीगुफा, बाघगुम्फा.

जैन तीर्थंकर और उनके प्रतिक –

ऋषभनाथ-        बैल
आजिनाथ –      हाथी
सम्भरनाथ-     घोडा
अभीआंदाम –   बन्दर
सुमतिनाथ-     जलपक्षी
सुपेरस्वान्त-    लाल कमल
चंद्रजी प्रभु –    चाँद
सुविधिनाथ –   मगरमच्छ
श्रीगंत –           गेंडा
वसुप्रिया-        भैंस
विमलनाथ –    सूअर
अनंतनाथ-     बाज़
धर्मनाथ –       वज्रा
शांतिनाथ-     हिरण
कुन्तुनाथ –     बकरा
अरनाथ –        मछली
मल्लिनाथ-     घड़ा
मुनीस्वस्थ-    कछुआ
नेमिनाथ-        नीलकमल
अरिष्टनेमि –   शंख
पार्शवनाथ-      नाग
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