ROUND TABLE CONFERENCE

ROUND TABLE CONFERENCE- गोलमेज़ सम्मलेन – MODERN INDIAN HISTORY

ROUND TABLE CONFERENCE- गोलमेज़ सम्मलेन

ROUND TABLE CONFERENCE

जिस समय सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे जोरों पर था, तब लार्ड इरविन ने इंग्लैण्ड की सरकार पर दबाव डाला कि भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन बुलाया जाय, जो भारत की संवैधानिक समस्याओं पर विचार-विमर्श कर सके।

इंग्लैण्ड की सरकार ने गोलमेज सम्मेलन की योजना स्वीकार कर ली।सम्मेलन में सभी विचारधाराओं के व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया।

मुसलमानों,हिन्दू महासभा, सिक्ख, ईसाई,जमींदारों,उद्योगपतियों,हरिजनों,यूरोपियनों,भारतीय नरेशों,इंग्लैण्ड के विभिन्न राजनीतिक दलों तथा भारतयी उदारपंथियों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया।

प्रतिनिधि सदस्यों का चयन इस प्रकार किया गया कि,भारतीय प्रतिनिधियों में मतभेद स्पष्ट हो जाये।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर काँग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन चला रही थी, अतः काँग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग नहीं लिया।

First Round Table Conference -प्रथम गोलमेज सम्मेलन

प्रथम गोलमेज सम्मेलन के प्रारंभ में ही इंग्लैण्ड के अनुदार दल व लिबरल दल के प्रतिनिधियों मे तथा भारतीय प्रतिनिधियों में मतभेद स्पष्ट हो गये।

रेम्जे मैक्डोनल्ड ने सुझाव दिया कि प्रांतों को पूर्ण स्वायतत्ता दे दी जाय, किन्तु अल्पमतों के हितों की रक्षा के लिए गवर्नर के पास विशेष शक्तियाँ रहें। केन्द्र में संघ स्थापित किया जाय, जिसमें ब्रिटिश प्रांतों व देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल हों और केन्द्र में दोहरा शासन स्थापित कर दिया जाय।

इन सभी बातों पर लगभग सारे प्रतिनिधि सहमत थे, किन्तु साम्प्रदायिक समस्या पर समझौता नहीं हो सका।मुसलमानों ने अलग प्रतिनिधित्व की माँग की तथा जिन्ना अपनी चौदह शर्तों को मनवाने के लिए अङा रहा।

डॉ.अम्बेडकर ने हरिजनों के लिए अलग प्रतिनिधित्व की माँग की। इस प्रकार प्रत्येक जाति के प्रतिनिधि ने अपने-2 हितों को सुरक्षित करने के लिए माँगे पेश की, अतः सम्मेलन में कोई निर्णय नहीं हो सका।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन 22 नवंबर,1930 से 13 जनवरी 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया।
  • यह ऐसी पहली वार्ता थी, जिसमें ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को बराबर का दर्जा दिया गया।
  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन जिसमें 89 सदस्यों में 13 ब्रिटिश, शेष 76 भारतीय राजनीतिक दलों से जैसे-भारतीय उदारवादी दल,हिन्दू महासभा, दलितवर्ग, व्यापारी वर्ग तथा रजवाङों के प्रतिनिधि थे।
  • इस सम्मेलन का उद्घाटन ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम ने किया तथा अध्यक्षता प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने की।
  • सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले प्रमुख नेता इस प्रकार थे- तेजबहादुर सप्रू, श्री निवासशास्त्री, मुहम्मद अली, मुहम्मद शफी, आगा खान, फजलूल हक, मुहम्मद अली जिन्ना, होमी मोदी, एम.आर.जयकर, मुंजे, भीमराव अंबेडकर, सुंदर सिंह मजीठिया आदि।

Second Round Table Conference

ROUND TABLE CONFERENCE
SECOND ROUND TABLE CONFERENCE

दूसरे गोलमेज सम्मेलन के अधिवेशन के दौरान अक्टूबर,1931 के चुनावों के बाद इंग्लैण्ड में अनुदार दल का मंत्रिमंडल बना। इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग लिया था जिसमें कांग्रेस की ओर से नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था।

दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7 सितंबर, 1931 को आरंभ हो गया। महात्मा गाँधी 12 सितंबर, 1931 में लंदन पहुँचे। इस सम्मेलन में डॉ.अम्बेडकर ने दलित वर्गों के लिए कुछ स्थान आरक्षति करने की माँग की, किन्तु गाँधीजी ने इसे अस्वीकार कर दिया और काँग्रेस को 85 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधि बताया।

महात्मा गाँधी ने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की।गांधी जी ने कहा कि साम्प्रदायिक समस्या भी अत्यधिक जिटिल बन गई है। यदि भारतीय प्रतिनिधि आपस में साम्प्रदायिक समस्या का हल नहीं निकाल सके तो उन्हें इसका निर्णय अंग्रेज सरकार पर छोङ देना चाहिये।

सम्मेलन के अधिकांश प्रतिनिधियों ने मेक्डोनल्ड के निर्णय के प्रति आस्था प्रकट की। गाँधीजी ने केवल मुसलमानों और सिक्खों के लिए मेक्डोनल्ड की मध्यस्थता स्वीकार की थी। दलित वर्गों के लिए नहीं।

लेकिन वहाँ प्रत्येक जाति के प्रतिनिधियों ने अपनी माँगें बढा-चढाकर पेश की।ब्रिटिश सरकार ने प्रत्येक जाति के प्रतिनिधि ऐसे ही चुने थे, जिनमें कोई समझौता न हो सका। अतः साम्प्रदायिक समस्या का हल नहीं निकल सका।

Important Points of Second Round Table Conference

  • दक्षिणपंथी विंस्टन चर्चिल ने ब्रिटिश सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि, वह (सरकार) देशद्रोही फकीर(गांधी जी) को बराबर का दर्जा देकर बात कर रही है।
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में मदनमोहन मालवीय एवं एनी बेसेन्ट ने खुद के खर्च पर भाग लिया था।
  • फ्रेंकमोरेस नामक ब्रिटिश नागरिक ने गांधी जी के बारे में इसी समय कहा, कि 

अर्ध नंगे फकीर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता हेतु सेण्टपाल पैलेस की सीढिया चढने का दृश्य अपने आप में एक अनोखा और दिव्य प्रभाव उत्पन्न कर रहा था।“

  • 28 दिसंबर,1931 को गांधी लंदन से खाली हाथ निराश बंबई पहुंचे, स्वदेश पहुँचने पर उन्होंने कहा, कि 

“यह सच है कि मैं खाली हाथ लौटा हूँ, किन्तु मुझे संतोष है कि जो ध्वज मुझे सौंपा गया था, मैंने उसे नीचे नहीं होने दिया और उसके सम्मान के साथ समझौता नहीं किया”

  • भारत आकर गांधी जी ने वेलिंगटन (वायसराय) से मिलना चाहा। लेकिन वायसराय ने मिलने से मना कर दिया, दूसरी ओर गांधी इरविन समझौते को भी सरकार ने दफन कर दिया था। अंततः मजबूर होकर गांधी ने द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने की घोषणा की।

Third Round Table Conference

लंदन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर,1932 से 24 दिसंबर 1932 तक चला, कांग्रेस ने सम्मेलन का बहिष्कार किया।

इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया था।

इस सम्मेलन में कुल 46 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में भारत सरकार अधिनियम 1935 हेतु ठोस योजना के अंतिम स्वरूप को पेश किया गया। भारत सचिव सर सैम्युअल होर इसके विरोधी थे।

कुल प्रतिनिधि 46 थे।

24 दिसम्बर, 1932 ई. को सम्मेलन की समाप्ति के बाद श्वेतपत्र जारी किया गया।

अध्यक्ष – लॉर्ड लिनलिथगो

तीनों सम्मेलनों के दौरान इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड था।

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