President of India(राष्‍ट्रपति)(1947-2020)

President of India

भारतीय संविधान द्धारा  लोकतंत्रात्मक प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी धर्म – निरपेक्ष गणराज्य  (Sovereign Socialist Secular Democratic Republic) की  गई है।  गणराज्य के सिद्धांत   सर्वोच्च कार्यपालिक (Chief Executive) की  शक्तियां राष्ट्रपति  में निहित  की  गई हैं।  राष्‍ट्रपति, भारत का राज्‍य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है और राष्‍ट्र की एकता, अखंडता एवं सुदृढ़ता का प्रतीक है। संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति में निहित होती है और संविधान  धारा 53 के अनुसार  वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्‍वयं या अपने अधीनस्‍थ अधिकारियों के द्वारा करता है। राष्‍ट्रपति देश की सेनाओं का सर्वोच्‍च सेनापति होता है।

President of India
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राष्‍ट्रपति चुनाव लड़ने हेतु योग्यताएं  (Qualifications for Contesting Presidential Election)

अनुच्‍छेद 58 में राष्‍ट्रपति निर्वाचित होने के लिये प्रत्‍याशी की अर्हताएँ बताई गई हैं। इनके अनुसार, कोई भी ऐसा व्‍यक्ति राष्‍ट्रपति हो सकता है जो –

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह लोकसभा का सदस्‍य निर्वाचित होने की अर्हता रखता हो।
  4. वह भारत सरकार या किसी राज्‍य सरकार या किसी स्‍थानीय या अन्‍य प्राधिकारी के अधीन लाभ का पद धारण न करता हो। इसी अनुच्‍छेद में यह स्‍पष्‍टीकरण दिया गया है कि इस प्रयोजन के लिये भारत के राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति, किसी राज्‍य के राज्‍यपाल, केन्‍द्र या राज्‍य सरकार के किसी मंत्री को लाभ के पद का धारक नहीं समझा जाएगा।
  5. वह  संघीय संसद किसी राज्य  के विधानमंडल का सदस्य न हो।  यदि  संसद या राज्य  विधानमंडल  के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति चुना जाता है जाता है तो उसे राष्ट्रपति  के पद की शपथ  लेने से पहले उस पद से त्यागपत्र देना होता है।

राष्‍ट्रपति का निर्वाचन (Election of the President)

संविधान की धारा  54 तथा 55 में राष्‍ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित उपबंध दिये गए हैं। अनुच्‍छेद 54 में इस बात का निर्देश है कि राष्‍ट्रपति के निर्वाचन में मत देने का अधिकार किसे होगा, जबकि अनुच्‍देद 55 में बताया गया है कि निर्वाचन की प्रक्रिया क्‍या होगी। 

निर्वाचक मंडल (Electoral College)

अनुच्‍छेद 54 में स्‍पष्‍ट किया गया है कि राष्‍ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मंडल के माध्‍यम से होगा जिसमें :-

  • संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्‍य तथा
  • राज्‍यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्‍य शामिल होंगे।

इस निर्वाचक मंडल में संविधान के ”70वें संशोधन अधिनियम, 1992” के द्वारा एक स्‍पष्‍टीकरण अंत:स्‍थापित किया गया था। इसके अनुसार राष्‍ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में राज्‍यों की सूची में दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पुडुचेरी संघ राज्‍यक्षेत्र भी शामिल होंगे।

अप्रत्‍यक्ष निर्वाचन (Indirect Election)

निर्वाचक मंडल के प्रावधान से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि भारत में राष्‍ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्‍यक्ष तरीके से होता है, जनता स्‍वयं चुनाव द्वारा राष्‍ट्रपति को नहीं चुनती।  अप्रत्‍यक्ष निर्वाचन को निम्‍नलिखित ठोस आधारों पर स्‍वीकार कर लिया गया –

  • भारत की बड़ी जनसंख्‍या तथा वृहत आकार को देखते हुए प्रत्‍यक्षा निर्वाचन की व्‍यवस्‍था करना न सिर्फ महंगा होता बल्कि समय की दृष्टि से भी अनुपयोगी होता।
  • प्रत्‍यक्ष निर्वाचन करने पर समस्‍याएँ कम नहीं होती। शक्ति संघर्ष की संभावना बनने की सम्भावना  रहती क्‍योंकि पूरे देश की जनता द्वारा चुना गया राष्‍ट्रपति, मंत्रिपरिषद की अधीनता कभी स्‍वीकार न करता।

निर्वाचन प्रक्रिया ( Election Process of President of India)

अनुच्‍छेद 55 में राष्‍ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया विस्‍तार में बताई गई है, जिसे निम्‍नलिखित बिन्‍दुओं द्वारा क्रमश: समझा जा सकता है –

  • राष्‍ट्रपति के चुनावमें एकल संक्रमणीय मत(Single Transferable Vote) द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्‍व(Propotional Representation) की पद्धति लागू की गई है जो मूलत: यहीं सुनिश्चित करने के लिये है कि निर्वाचित उम्‍मीदवार आनुपातिक दृष्टि से सर्वाधिक लोगों की पसंद हो। इस पद्धति में सबसे पहले एक कोटा तय कर लिया जाता है जो भारत के राष्‍ट्रपति के मामले में 50% से अधिक मतों का है। यह कोटा चुनाव में वास्‍तविक रूप से कितने मतों के बराबर होगा, यह निर्धारित करने के लिये एक विधि (Formula) है जो इस प्रकार है –

           (शुद्ध मतों की संख्या / कुल स्थानों की संख्या +1 ) + 1 = कोटा 

  • इस पद्धति में प्रत्‍येक मतदाता को मत देते समय अपनी वरीयताओं का अंकन करना होता है अर्थात् उसे बताना होता है कि विभिन्‍न प्रत्‍याशियों के लिये उसकी वरीयता क्रम क्‍या है?
  • अनुच्‍छेद 55(2) में बताया गया है कि किसी राज्य  का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य  उतने मत दे सकता है जितने राज्य  को विधानसभा  सदस्यों  की संख्या से संख्या  भाग (Divide) करके और भागफल को 1000 से भाग करके आये।  यदि भाग करने  पश्चात 500 से कम न  हो तो मतों की कुल संख्या में एक मत की वृद्धि की जाती है।  साधारणतः एक राज्य  विधानसभा के सदस्यों के मतों की कुल संख्या इस प्रकार निश्चित  जाती है-

1 विधायक का मत मूल्‍य = (राज्‍य की कुल जनसंख्‍या)/(राज्‍य विधानसभा के निर्वाचित      सदस्‍यों की कुल संख्‍या ) × 1/1000अनुच्‍छेद 55 (2) में संख्‍या की 1000 के गुणजों तक लेने की बात कही गई है और शेषफल 500 से कम हो तो उसे छोड़ देने तथा 500 से ज्‍यादा हो तो परिणाम में 1 जोड़ देने का निर्देश दिया जाता है ।

  • इस तरह सभी राज्‍यों की विधानसभाओं के विधायकों के मतों का मूल्‍य निकाला और उन्‍हें जोड़ दिया जाएगा गौरतलब है कि यदि राष्‍ट्रपति के चुनाव के समय किसी विधानसभा में कुद स्‍थान खाली हैं या किसी राज्‍य की विधानसभा भंग है तो उससे राष्‍ट्रपति का चुनाव बाधित नहीं होगा।
  • सभी राज्‍यों की विधासभाओं के सभी निर्वाचित विधायकों के मतों के कुल योग तथा संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्‍यों के मतों का कुल योग में समतुल्‍यता होनी चाहिए। इस उपबंध का उद्देश्‍य यह है कि राष्‍ट्रपति के निर्वाचन में राज्‍यों की उतनी ही भूमिका हो, जितनी केन्‍द्र की; ताकि हमारी राजव्‍यवस्‍था का संघात्‍मक ढाँचा मजबूत बना रहे।
  • एक सांसद के मत का मूल्‍य इस प्रकार निकाला जाता है।

1 सांसद का मत मूल्‍य = (सभी राज्‍यों के सभी निर्वाचित विधायकों के मतों का कुल मूल्‍य )/(संसद के निर्वाचित सदस्‍यों की कुल संख्‍या)

सभी विधायकों तथा सांसदों के मतों का मूल्‍य तय हो जाने के बाद जीतने के लिये कोटा निर्धारित किया जाता है। कोटे के अनुसार निर्धारित मत प्राप्‍त करने की प्रक्रिया ‘एकल संक्रमणीय’(Single Transferable Vote) मतों पर आधारित होती है। यदि किसी भी उम्‍मीदवार को पहली वरीयता में कोटे के लिये अपेक्षित मत न मिले हों तो अंतिम आने वाले उम्‍मीदवार को पराजित घोषित कर दिया जाता है तथा उसे प्राप्‍त हुए प्रथम वरीयता वाले मतों का विभाजन उन मतों पर अंकित दूसरी वरीयता के अनुसार शेष प्रत्‍याशियों में कर दिया जाता है। इस  प्रक्रिया को  तब तक अपनाया  जा‍ता है जब तक कि कोई उम्‍मीदवार निर्धारित कोटा न प्राप्‍त कर ले। निर्धारित कोटा प्राप्‍त करने के बाद उस उम्‍मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है।अनुच्‍छेद 55 में एक स्‍पष्‍टीकरण देकर बताया गया है कि विधायकों के मतों की गणना के लिये राज्‍य की जनसंख्‍या से आशय 1971 की जनसंख्‍या से है ‘’42वें संविधान अधिनियम 1976” के माध्‍यम से प्रावधान किया गया था कि 2000 के बाद पहली जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने तक 1971 की जनगणना को ही आधार माना जाएगा आगे चलकर ”84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001” के माध्‍यम से यह स्थिति 2026 तक के लिये बढ़ा दी गई है।

राष्‍ट्रपति और उपराष्‍ट्रपति निर्वाचन संशोधन अधिनियम, 1997  के अंतर्गत यह व्‍यवस्‍था की गई कि राष्‍ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिये किसी प्रत्‍याशी का नाम कम-से-कम 50 सदस्‍यों द्वारा प्रस्‍तावित तथा 50 सदस्‍यों द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।

उपराष्‍ट्रपति के मामले में ये संख्‍याएँ 20-20 रखी गई हैं। साथ ही, इन पदों पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों के लिये 15 हजार रूपये की जमानत राशि निश्चित की गई है।

यदि कोई उम्‍मीदवार चुनाव में डाले गए कुल वैध मतों का 1/6 भाग प्राप्‍त करने में असफल रहता है तो उसकी जमानत राशि जब्‍त कर लिये जाने का प्रावधान है।

राष्‍ट्रपति का शपथ (Oath of President of India)

उच्‍चतम न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उच्‍चतम् न्‍यायालय के वरिष्‍ठतम् द्वारा राष्‍ट्रपति पद की शपथ दिलाई जाती है।

अनुच्‍छेद 71 में स्‍पष्‍ट किया गया है कि राष्‍ट्रपति या उपराष्‍ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित सभी शंकाओं और विवादों की जाँच तथा फैसले सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा किये जाएंगे और इस संबंध में उसका निर्णय अंतिम होगा।

साथ ही यह भी प्रावधान है कि यदि सर्वोच्‍च न्‍यायालय राष्‍ट्रपति या उपराष्‍ट्रपति के रूप में किसी व्‍यक्ति के निर्वाचन को शूल्‍य घोषित कर देता है तो भी उस व्‍यक्ति द्वारा पद धारण करने की तिथि से सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय की तिथि तक पद की शक्तियों के अंतर्गत किये गए कार्य अवैध नहीं होंगे।

राष्‍ट्रपति का पुनर्निवाचन (Re-election of the President)

अनुच्‍छेद 57 में यह बताया गया है कि यदि कोई व्‍यक्ति राष्‍ट्रपति के रूप में पहले निर्वाचित हो चुका है तो भी उसके पुन: इस पद के लिये चुनाव लड़ने का अधिकार होगा। इस संबंध में चुनाव लड़ने के प्रयासों की कोई अधिकतम सीमा नहीं बताई गई है। अर्थात् वह जितनी बार चाहे चुनाव लड़ सकता है।

राष्‍ट्रपति की शक्तियाँ (Powers of the President)

  1. प्रशासनिक शक्तियाँ
  2. सैन्‍य शक्तियाँ
  3. राजनयिक/कूटनीतिक शक्तियाँ
  4. विधायी शक्तियाँ
  5. वित्‍तीय शक्तियाँ
  6. न्‍यायिक शक्तियाँ
  7. वीटो शक्ति
  8. आपातकालीन शक्तियाँ
  9. अध्‍यादेश जारी करने की शक्ति
  10. अन्‍य शक्तियाँ

Administrative Powers(प्रशासनिक शक्तियाँ)

वे सभी कार्य जो विभिन्‍न मंत्रालयों और विभागों द्वारा किये जाते हैं प्रशासनिक कार्य  कहलाते हैं । अनुच्‍छेद 77(i) में प्रावधान है कि ”भारत सरकार की समस्‍त कार्यपालिका कार्रवाई राष्‍ट्रपति के नाम से ही हुई कही जाएगी।”

संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्‍वयं या अपने अधीनस्‍थ अधिकारियों के द्वारा करेगा। (अनुच्‍छेद 53(1)) प्रशासनिक शक्ति के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को देश के सभी उच्‍च अधिकारियों की नियुक्ति करने तथा उन्‍हें हटाने की शक्ति दी गई।

राष्‍ट्रपति द्वारा निम्‍नलिखित प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है –

  1. भारत का प्रधानमंत्री व उसका मंत्रिपरिषद
  2. भारत का महान्‍यायवादी
  3. भारत का नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक
  4. उच्‍चतम् न्‍यायालय तथा सभी उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीश
  5. सभी राज्‍यों के राज्‍यपाल तथा उपराज्‍यपाल
  6. मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त तथा अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍त
  7. संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष तथा अन्‍य सदस्‍य
  8. वित्‍त आयोग के अध्‍यक्ष और सदस्‍य
  9. अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिये विशेष अधिकारी
  10. भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों के संरक्षण के लिये विशेष अधिकारी आदि।

ये सभी नियुक्तियाँ राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से नहीं, मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करनी होती है। कुछ पदों के लिये वह अन्‍य व्‍यक्तियों से भी सलाह ले सकता है। जैसे – सर्वोच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश से सलाह से  करता है।

सैन्‍य शक्तियां (Military Powers)

राष्‍ट्रपति देश की तीनों सेनाओं का सर्वोच्‍च सेनापति है। उसे किसी देश के साथ युद्ध घोषित करने तथा शांति स्‍थापित करने की शक्ति है। परन्‍तु, यह शक्ति वास्‍तविक शक्ति न होकर सिर्फ औपचारिक शक्ति है, क्‍योंकि संविधान के अनुसार राष्‍ट्रपति मंत्रिपरिषण की सलाह के अनुसार कार्य करता है 

राजनयिक / कूटनीतिक शक्तियां (Diplomatic Powers)

राजनयिक शक्तियों से तात्‍पर्य उन सभी शक्तियों से है जो विदेश राज्‍यों के साथ संबंधों के स्‍तर पर लागू होती है।  राष्‍ट्रपति अन्‍य देशों के लिये राजदूतों तथा कूटनीतिक अधिकारियों की नियुक्ति करता है तथा अन्‍य देशों द्वारा भारत में नियुक्‍त किये गए राजदूतों तथा अन्‍य प्रतिनिधियों का स्‍वागत भी करता है।

विधायी शक्तियां (Legistative Powers)

  1. वह संसद के दोनों सदनों को संसद सत्र हेतु आहूत करता है तथा सत्रावसान करता है (अनुच्‍छेद 85)
  2. दोनों सदनों में गतिरोध की स्थिति में वह दोनों सदनों की संयुक्‍त बैठक बुला सकता है। (अनुच्‍छेद 108)
  3. प्रत्‍येक आम चुनाव के पहले सत्र तथा प्रत्‍येक वर्ष के पहले सत्र के आरंभ में राष्‍ट्रपति दोनों सदनों के संयुक्‍त सत्र को संबोधित करता है। (अनुच्‍छेद 87)
  4. राष्‍ट्रपति 12 ऐसे व्‍यक्तियों को राज्‍यसभा में नामांकित करता है जिनके पास साहित्‍य, कला, विज्ञान और समाज सेवा में कोई विशेष ज्ञान या व्‍यावहारिक अनुभव हो। (अनुच्‍छेद 80)

इसी प्रकार उसे यह भी अधिकार है कि लोकसभा में आंग्‍ल भारतीय समुदाय का पर्याप्‍त प्रतिनिधित्‍व नहीं होने की स्थिति में अधिकतम 2 सदस्‍यों को लोगसभा के लिये नामांकित कर सकता है। (अनुच्‍छेद 131)

  • राष्‍ट्रपति का यह दायित्‍व है कि वह संसद के समक्ष विभिन्‍न प्रतिवेदन प्रस्‍तुत कराए। जैसे –
    1. बजट या वार्षित वित्‍तीय विवरण (अनुच्‍छेद 112)
    2. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 151)
    3. वित्‍त आयोग की अनुशंसाएँ (अनुच्‍छेद 281)
    4. संघ लोक सेवा आयोग का वार्षित प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 323)
    5. पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 340)
    6. राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 338)
    7. राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का प्रतिवेदन (अनुच्‍छेद 338क)

    1. कुछ विधेयक राष्‍ट्रपति के पूर्व अनुमति के बिना संसद में पेश नहीं किये जा सकते –
    2. नए राज्‍यों के निर्माण या वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को परिवर्तित करने वाले विधेयक (अनुच्‍छेद 3)।
    3. धन विधेयक राष्‍ट्रपति की सिफारिश से ही संसद में पेश किया जाएगा (अनुच्‍छेद 117(1))।
    4. ऐसा विधेयक जिसके अधिनियमित किये जाने पर भारत की संचित निधि से व्‍यय करना पड़ेगा। (अनुच्‍छेद 117(3))
    5. ऐसा विधेयक जो उन करों के बारे में है जिनमें राज्‍य हितबद्ध है या जो उन सिद्धान्‍तों को प्रभावित करता है जिनमें राज्‍यों को धन वितरित किया जाता है या जो कृषि-आय की परिभाषा में परिवर्तन करता है (अनुच्‍छेद 274(1))
    6. राज्‍यों के ऐसे विधेयक जो व्‍यापार और वाणित्‍य की स्‍वतंत्रता को प्रभावित करते हैं

वित्‍तीय शक्तियां (Financial Powers)

  1. धन विधेयक राष्‍ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्‍तुत किया जा सकता है।
  2. वह वार्षिक वित्‍तीय ब्यौरा  (Central Budget) को संसद के समक्ष रखवाता है।
  3. अनुदान की कोई भी मांग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
  4. वह भारत की आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्‍य व्‍यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्‍यवस्‍था कर सकता है।
  5. वह राज्‍य और केंद्र के मध्‍य राजस्‍व के बँटवारे के लिये प्रत्‍येक पाँच वर्ष में एक वित्‍त आयोग का गठन करता है।

Also Read – Comptroller and Auditor General of India, Attorney General of India, Supreme Court of India,

 न्‍यायिक शक्तियां (Judicial Powers)

  1. अपनी न्‍यायिक शक्तियों के अंतर्गत राष्‍ट्रपति उच्‍चतम न्‍यायालय में मुख्‍य न्‍यायाधीश एवं अन्‍य न्‍यायाधीशों की निुक्ति करता है। साथ ही राज्‍य के उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों को भी नियुक्ति करता है।
  2. राष्‍ट्रपति विधिक सलाह भी उच्‍चतम न्‍यायालय से ले सकता है, परन्‍तु न्‍यायालय की यह सलाह राष्‍ट्रपति के लिये बाध्‍यकारी नहीं होती है।
  3. अनुच्‍छेद-72 के तहत राष्‍ट्रपति को दोषी सिद्ध किये गए किसी व्‍यक्ति के दंड को कम करने या माफ करने की शक्ति तीन मामलों में प्राप्‍त होती है।
    • यदि दंड या दंड का आदेश सेना न्‍यायालय द्वारा दिया गया है।
    • ऐसे सभी मामले जिसमें मृत्‍यु दंड का आदेश दिया गया है, चाहे वे मामले संघ से संबंधित हो या राज्‍यों से। राष्‍ट्रपति किसी दंड के संबंध में कई तरह से क्षमादान की शक्ति का प्रयोग कर सकता है। 

क्षमादान – क्षमा, लघुकरण, परिहार, विराम, प्रविलंबन

  1. क्षमा (Pardon) : इसका अर्थ है कि अपराधी को दंड या दंडादेश से पूरी तरह मुक्‍त कर देना। इससे दोषसिद्ध व्‍यक्ति ऐसी स्थिति में पहुँच जाता है जैसे कि उसने कोई अपराध किया ही नहीं था।
  2. परिहार (Remission) : इसका अर्थ है कि आदेश बदले बिना दंड की मात्रा को कम कर देना जैसे –5 वर्ष के कठोर कारावास को 2 वर्ष के कठोर कारावास में बदल देना।
  3. लघुकरण (Commute) : इसका अथ है किसी कठोर प्रकृति के दंड के स्‍थान पर हल्‍की प्रकृति का दंड दिया जाना जैसे –
    • कठोर कारावास को साधारण कारावास में;
    • मृत्‍युदंड को आजीवन कारावास में बदल देगा।
  4. प्रविलंबन (Reprieve) :  मृत्‍युदंड को अस्‍थाई तौर पर निलंबित कर देना, ऐसा आमतौर पर तब किया जाता है, जब दोषसिद्ध अपराधी ने क्षमा या लघुकरण की प्रार्थना की होती है और राष्‍ट्रपति उस प्रार्थना पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में होता है।
  5. विराम (Respile) : इसका अर्थ है कि दंड पाए हुए व्‍यक्ति की विशिष्‍ट अवस्‍था के कारण प्रकृति की कठोरता को कम करना। कठोरता में कमी दंड की प्रकृति बदलकर भी की जा सकती है और दंड की मात्रा कम कर के भी जैसे –
    • किसी गर्भवती स्‍त्री को मृत्‍युदंड के स्‍थान पर आजीवन कारावास दे देना।
    • किसी वृद्ध  अपराधी को कठोर कारावास की जगह साधारण कारावास दे देना।

राष्‍ट्रपति की वीटो शक्ति (Veto Powers of the President)

जब संसद द्वारा पारित कोई विधेयक तथा अधिनियम बनता है जब राष्‍ट्रपति उस विधेयक पर अपने हस्ताक्षर  है।  जब ऐसा विधेयक राष्‍ट्रपति की सहमति के लिये प्रस्‍तुत होता है तो उसके पास तीन विकल्‍प होते हैं (अनुच्‍छेद 111)

  •  विधेयक पर अपनी स्‍वीकृति दे सकता है या वह विधेयक पर अपनी स्‍वीकृति को सुरक्षित रख सकता है या वह विधेयक (धन विधेयक नहीं) को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है।
  • राष्‍ट्रपति को यह वीटो शक्ति दो कारणों से दी जाती है।
    • यदि विधायिका कोई ऐसा कानून बना रही हो जो संविधान के मूल भावना के विपरीत है, जो उसे रोका जा सके या यदि विधायिका ने कानून के कुद पक्षों पर पर्याप्‍त विचार-विमर्श न किया हो और ज़ल्‍दबाजी में उसे पारित कर दिया हो तो उसे सुधारा जा सके।

वीटो की य‍ह शक्ति चार प्रकार की हो सकती है किन्‍तु भारतीय राष्‍ट्रपति के पास सामान्‍यत: जीन प्रकार की वीटो शक्ति है।

जेबी वीटो (Pocket Veto)

कार्यपालिका के प्रमुख द्वारा विधेयक पर सकारात्‍मक या नकारात्‍मक प्रतिक्रिया देने की बजाय उसे अपने पास पड़े रहने देना है।

राष्‍ट्रपति बिना कोई निर्णय किये विधेयक को अपने पास रोककर रख सकता है। इसके लिये राष्‍ट्रपतिके पास जो वीटो सबसे प्रभावी रूप में है वह ‘जेबी वीटो’ है। संविधान में सिर्फ इतना लिखा है कि राष्‍ट्रपति, संसद द्वारा पारित विधेयक को यथाशीघ्र लौटा देगा। (अनुच्‍छेद 111)। इसमें कोई निश्चित अवधि नहीं बताई गई है। इसका लाभ उठाकर राष्‍ट्रपति किसी विधेयक को अनंतकाल तक अपने पास रोककर रख सकता है।

निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)

राष्‍ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है, जब वह किसी विधेयक को संसद में पुनर्विचार हेतु लौटाता है। हालाँकि यदि संसद उस विधेयकको पुन: किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन के साथ पारित कर राष्‍ट्रपति के पास भेजती है तो उस पर राष्‍ट्रपति को अपनी स्‍वीकृति देना बाध्‍यकारी है।राष्‍ट्रपति धन विधेयक के मामले में इस बीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है। राष्‍ट्रपति किसी धन विधेयक को अपनी स्‍वीकृति  दे सकता है या उसे रोककर रख सकता है परंतु उसे पुनर्विचारके लिये नहीं भेज सकता है।

आंत्यंतिक वीटो (Absolute Veto)

वीटो की ऐसी शक्ति जो विधायिका द्वारा पारित किये गए विधेयक को पूरी तरह खारिज कर सकती है। भारत के राष्‍ट्रपति को सीमित रूप से आत्‍यंतिक वीटो की शक्ति प्राप्‍त है। उदाहरण स्‍वरूप

  1. किसी प्रायवेट सदस्‍य का विधेयक हो और मंत्रिपरिषद की सलाह उसके पक्ष में न हो तो राष्‍ट्रपति विधेयक को अनुमति देनेसे मना कर सकता है।
  2. यदि राष्‍ट्रपति के पास विधेयक भेजने के बाद, किंतु उसकी अनुमति मिलने से पहले ही सरकार गिर जाए और लोकसभा के बहुमत से बनी नई सरकार अर्थात् मंत्रिपरिषद राष्‍ट्रपति को वह विधेयक अस्‍वीकार करने की सलाह दे, तो भी वह आत्‍यंतिक वीटो का प्रयोग कर सकता है।

विशेषित वीटो (Qualified Veto)

विशेषित वीटो का अर्थ ऐसी वीटो शक्ति से है जिसे एक विशेष बहुमत के आधार पर विधायिका द्वारा खारिज किया जा सकता है। 

आपातकालीन  शक्तियां (Emergency Powers)

  1. राष्ट्रपति शासन  अनुच्‍छेद 356 के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को यह शक्ति है कि यदि किसी राज्‍य के राज्‍यपाल के प्रतिवेदन पर या उसे समाधान हो जाए कि राज्‍य में संवैधानिक व्यवस्था बिगड गई है तो वह उस राज्‍य में आपात की घोषणा कर सकता है।
  2. वितीय आपातकाल  अनुच्‍छेद 360 में बताया गया है कि यदि राष्‍ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि भारत या उसके किसी भाग का ‘वित्‍तीय स्‍थायित्‍व’ या ‘साख’ संकट में है तो वह आपात् की उद्घोषणा कर सकेगा ऐसी उद्घोषणा शब्‍दावली में ‘वित्‍तीय आपात’ कहा जाता है।
  3.   राष्ट्रिय आपातकाल  अनुच्‍छेद 352 के तहत युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर (सशस्‍त्र विद्रोह के आधार पर नहीं) की गई है, तो अनुच्‍छेद 19 स्‍वत: नि‍लंबित हो जाएगा। अनुच्‍छेद 359 में राष्‍ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वह अनुच्‍छेद 20 और 21 के अलावा शेष अनुच्‍छेदों में दिये गए मूल अधिकारों या उनमें से किन्‍हीं का निलंबन कर सकेगा।

राष्‍ट्रपति की अध्‍यादेश जारी करने की अधिकार  (President’s power to issue ordinances)

संसद के दोनों-  सदन सत्र में न हो और राष्‍ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिसमें तुरंत कार्यवाही करना आवश्‍यक हो गया है तो वह अध्‍यादेश जारी कर सकेगा।अध्‍यादेश का प्रभाव ठीक वही होता है जो कि संसद द्वारा पारित अधिनियम का होता है। अर्थात् कहा जा सकता है कि कार्यपालिका के प्रमुख को यह शक्ति दी गई है कि यदि विधायिका का सत्र (संसदका सत्र) न चल रहा हो तो परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुए वह स्‍वयं विधायिका की भूमिका में आ जाए। निम्‍नलिखित परिस्थितियों में राष्‍ट्रपति को अध्‍यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्‍त है –

  • जब संसद के दोनों सदन एक साथ सत्र में न हो; इसका अर्थ है कि अगर एक सदन सत्र में है तो भी अध्‍यादेश जारी किया जा सकता है।
  • अध्‍यादेश का वही बल और प्रभाव होता है जो संसद द्वारा पारित अधिनियम का होता है।
  • मूल अधिकारों का उललंघन करने वाला कोई अध्‍यादेश जारी नहीं किया जा सकता।
  • अध्‍यादेश का जीवनकाल, सदन की बैठक से 6 सप्‍ताह तक रहता है। (बाद वाले सदन की बैठक से) इसी बीच-
    • अगर संसद के दोनों सदन उसका अनुमोदन करने का संकल्‍प पारित कर दें तो वह अधिनियम बन जाता है।
    • 6 सप्‍ताह से पहले ही दोनों सदन उसे संकल्‍प द्वारा खारिज कर दे तो यह समाप्‍त हो जाता है।
  • अध्‍यादेश के द्वारा संविधान में संशोधन नहीं किया जा सकता।
  • राष्‍ट्रपति कभी भी अध्‍यादेश को वापस ले सकता है।

अन्‍य शक्तियां (Other Powers of President)

  • वह किसी ‘विधि’ या तथ्‍य के ऐसे प्रश्‍न पर जो व्‍यापक महत्‍व का है और उसे लगता है कि सर्वोच्‍च न्‍यायालय से इस विषय पर सलाह लेनी चाहिए तो वह सलाह मांग सकता है।
  •  राष्‍ट्रपति सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिये गए सलाह को मानने के लिये बाध्‍य है।
  • संघ राज्‍य क्षेत्रों का प्रशासन राष्‍ट्रपति के अधीन ही चलाया जाता है। उसे इन क्षेत्रों में प्रशासन के संबंध में नियम बनाने की शक्ति प्राप्‍त है। (अनुच्‍देद 239)
  • अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के रूप में विभिन्‍न सामाजिक समूहों को पहचानने तथा उन्‍हें इन सूचियों में शामिल करने की शक्ति भी राष्‍ट्रपति के पास है। 
  • राष्‍ट्रपति को अनुच्‍छेद 339 के तहत यह शक्ति प्राप्‍त है कि अनुसूचित क्षेत्रों जिसे जनजा‍तीय आबादी के कारण विशेष संरक्षणदिया जाता है, के रूप में कुछ और क्षेत्रों को शामिल करने या कुछ क्षेत्रों को शामिल करने या कुछ क्षेत्रों को सूची से बाहर करने का निर्णय कर सकता है तथा किसी राज्‍य विशेष के राज्‍यपाल से अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन मांग सकता है

 Term of the President

अनुच्‍छेद 56 के अनुसार राष्‍ट्रपति अपना पद ग्रहरण करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा उसके बाद यदि वह चाहे तो पुनर्निवाचन का प्रत्‍याशी हो सकता है।5 वर्ष के भीतर राष्‍ट्रप‍ति की पदावधि निम्‍न प्रकार से समाप्‍त हो सकती है। ये उसकी आकस्मिक मृत्‍यु से अलग है –

यदि पद रिक्‍त होने के कारण उसके कार्यकाल का समाप्‍त होना हो तो उस पद को भरने के लिये कार्यकाल चुनाव कराकर नए राष्‍ट्रपति का निर्वाचन करा लेना चाहिए। यदि नए राष्‍ट्रपति के चुनाव में किसी कारण देरी हो तो, वर्तमान राष्‍ट्रपति अपने पद तब तक बना रहेगा जब तक कि उसका उत्‍तराधिकारी कार्यभार ग्रहणन कर ले।

  1. राष्‍ट्रपति उपराष्‍ट्रपति को संबोधित त्‍यागपत्र के माध्‍यम से अपनी पदावधि समाप्‍त कर सकता है। (अनुच्‍छेद 56(1)(क))
  2. यदि राष्‍ट्रपति ‘संविधान का अतिक्रमण’ करता है तो अनुच्‍छेद 61 में बताई गई रीति के आधार पर उस पर महाभियोग चलाया जा सकता है। अनुच्‍छेद 56(1)(ख)
  3. कार्यकाल समाप्‍त होने पर।
  4. यदि पद ग्रहण करने के लिए अर्ह न हो अथवा निर्वाचन अवैध घोषित हो।

इस स्थिति में उपराष्‍ट्रपति, राष्‍ट्रपति के दायित्‍वों का निर्वाह नहीं करेगा। इसके अलावा उनकी गैर मौजूदगी में उपराष्‍ट्रपति, राष्‍ट्रपति के कर्तव्‍यों का निर्वाह करेगा।

राष्‍ट्रपति पर महाभियोग (Impeachment on the President)

 महाभियोग एक अर्द्ध-न्‍यायिक प्रक्रिया है जिसके माध्‍यम से राष्‍ट्रपति को उसकी पदावधि के दौरान पद से हटाया जा सकता है।( अनुच्‍छेद  61 )

इस प्रक्रिया को निम्‍नलिखित बिन्‍दुओं के माध्‍यम से समझा जा सकता है।

  1. सबसे पहले यदि संसद का कोई सदन राष्‍ट्रपति पर ‘संविधान के अतिक्रमण’ का आरोप लगाएगा। आरोप लगाने की कुछ शर्ते हैं –
    • यह आरोप एक संकल्‍प के रूप में होना चाहिए।
    • यह कम से कम 14 दिनों की लिखित सूचना देने के बाद प्रस्‍तावित किया जाना चाहिए।
    • सदन की कुल संख्‍या के कम से कम 1/4 सदस्‍यों ने हस्‍ताक्षन करके उस संकल्‍प को प्रस्‍तावित करने का प्रयोजन प्रकट किया हो।
  2. जब संसद का एक सदन ऐसा आरोप लगा देगा, तो दूसरा सदन उस पर आरोप का अन्‍वेषण करेगा। इस अन्‍वेषण के अंतर्गत राष्‍ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह स्‍वयं उपस्थि‍त होकर या अपने किसी प्रतिनिधि के माध्‍यम से अपनाबचाव पक्ष प्रस्‍तुत करे।
  3. यदि जाँच के बाद वह सदन सहमत हो जाता है कि राष्‍ट्रपति के विष्‍द्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है; और वह सदन इस संकल्‍प को 2/3 बहुमत से पारित कर देता है तो ऐसा संकल्‍प पारित होने की तिथि से राष्‍ट्रपति अपने पद से हटा हुआ माना जाएगा।

राष्‍ट्रपति पद की रिक्‍तता तथा उसकी पूर्ति (Presidential Vacancies and their Fulfillment)

जब राष्‍ट्रपति का पद रिक्‍त होता है तब उपराष्‍ट्रपति, राष्‍ट्रपति के रूप में कार्य करता है। यह रिक्‍ताता मृत्‍यु, पद-त्‍याग, महाभियोग द्वारा पद से हटाए जाने या किसी अन्‍य कारण से हो सकती है।

राष्ट्रपति  की वास्तविक स्थिति 

संवैधानिक उपबंधों के अनुसार राष्‍ट्रपति मंत्रिपरिषण की सलाह मानने को बाध्‍य है, किंतु इतने भर से यह निष्‍कर्ष निकाल लेना गलत होगा कि राष्‍ट्रपतिसिर्फ एक ‘रबड़ की मुहर’ है। वस्‍तुत: कई ऐसी स्थितियाँ भी हैं जिनमें राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से ही निर्णय करना होता है। जैसे –

  1. यदि लोकसभा के चुनाव परिणामों में किसी एक दल या चुनाव पूर्व गठबंधन को स्‍पष्‍ट बहुमत प्राप्‍त नहीं होता है तो राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से ही यह निश्‍चय करना होता है कि स्थिर व स्‍वच्‍छ सरकार देने की दृष्टि से किसका दावा सबसे मजबूत है।
  2. कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री की आकस्मिक मृत्‍यु हो जाए। ऐसी स्थिति में राष्‍ट्रपति विभिन्‍न विकल्‍पों पर विचार करतेहुए स्‍वयं ही ऐसे व्‍यक्ति को सरकार बनाने का न्‍यौता देता है जो उसकी राय में लोकसभा का विश्‍वास प्राप्‍त करने में सक्षम हो।
  3. यदि कोई प्रधानमंत्री लोकसभा का विश्‍वास खो दे तथा अविश्‍वास मत या विश्‍वास मत का सामना करने कीबजाय राष्‍ट्रपति को लोकसभा विघटित करने की सलाह दे तो भी राष्‍ट्रपति को अपने विवेक से ही निर्णय करना होता है।
  4. 44वें संशोधन के बाद अब राष्‍ट्रपति को यह शक्ति दी गई कि वह मंत्रिपरिषद की किसी अनुचित सिफारिश को पुनर्विचार के लिये लौटा सके।
  5. यदि लोकसभा का विघटन हो गया हो तथा नई लोकसभा का गठन न हुआ हो तो पुरानी मंत्रिपरिषद ही नई मंत्रिपरिषद के गठन तक राष्‍ट्रपति को सलाह देती है। इस समय राष्‍टप्रति को विशेष ध्‍यान रखना होता है कि वह किसी ऐसी सिफारिश को स्‍वीकार्य न करे जो चुनाव में उस दल को लाभ पहुँचाती हो या कोई बड़ा नीतिगत निर्णय करने के संबंधम में हो।

LIST OF PRESIDENTS OF INDIA

Name of President  DOB Term Interesting Facts
Dr. Rajender Prasad 1884-1963 1950-1962 President of Constituition Assembly
Dr. Sarvpalli Radhakrishnan 1888-1975 1962-1967 Vice President
Dr. Zakir Hussain 1897-1969 1967-1969 Died during tenure
V.V.Giri 1894-1980 03.05.1969-20.07.1969 Officiating
(Vice President)
M.Hidayatullah Begh 20.07.1969-24.08.1969 Officiating
(Chief Justice)
V.V.Giri 1969-1974  
Fakhruddin Ahmad 1905-1977 1974-1977 (Central Minister)Died during tennure
Neelam Sanjeev Reddy 1913-1996 1977-1982   Elected without opposition
Gyani Jail Singh 1916-1994 1982-1987 First Sikh President
Ramaswami Venkatraman 1910-2009 1987-1992 Vice President
Dr. Shankar Dayal Sharma 1918-1999 1992-1997 Vice President(Worked with 4 Prime Ministers)
K.R. Narayan 1920-2005 1997-2002   First Dalit President
Dr. A.P.J. Abdul Kalam 1931 2002-2007   Scientist
Smt. Pratibha Patil 1934 2007-2012 First Women President
Dr. Pranab Mukharji 1935 2012 से 2017 Finance Minister
Ramnath Kovind 1945 2017 से अब तक  Member of Rajya Sabha

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