Permanent Settlement

Permanent Settlement, Ryotwari System & Mahalwari System

Permanent Settlement,Ryotwari System & Mahalwari System

ईस्ट इंडिया कंपनी का उद्देश्य भारत से अधिक  से अधिक राजस्व एकत्रित (Main objective was to collect maximum revenue)करना था।  राजस्व एकत्रित करने के लिए कंपनी ने विभिन्न तरह की नीतियां अपनाई तथा निम्नलिखित भू राजस्व व्यवस्थाओं(Land Revenue Systems) को भारत में लागू किया। 

1. स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement)

2. रैयतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System)

3. महलवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System)

Permanent Settlement,Ryotwari System & Mahalwari System

स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement)

कंपनी के अंतर्गत बंगाल में भू-राजस्व व्यवस्था(Land Revenue System) को निर्धारण का प्रश्न खड़ा हुआ, जब ब्रिटिश कंपनी को बंगाल की दीवानी प्राप्त हुई। आरम्भ में लॉर्ड क्लाइव (Lord Clive) ने भारतीय अधिकारियो के माध्यम से ही भू-राजस्व की वसूली(Tax Collection) जारी रखी तथा भू-राजस्व व्यवस्था में परम्परागत ढाँचे को ही बरकरार रखा। भू-राजस्व की अधिकतम वसूली पर कंपनी शुरू से ही बल देती थी। इसके अतिरिक्त सैनिक एवं अन्य (to meet out the expenses of Armies and others)प्रकार के खर्च को भी पूरा करना कंपनी का उदेश्य था। अतः बंगाल कि दीवानी प्राप्त करने के शीघ्र बाद ही कंपनी ने बंगाल में भू-राजस्व कि रकम बढ़ा(Increased tax) दी। फिर भी कंपनी ने भारतीय अधिकारियों के माध्यम से ही भू-राजस्व की वसूली की। भू-राजस्व की वसूली की देख-रेख ब्रिटिश अधिकारियो द्वारा ही की जाती थी। किन्तु, इस व्यवस्था का दुष्परिणाम यह रहा कि इस प्रकार की दोहरी व्यवस्था ने एक प्रकार के भष्टाचार को जन्म दिया तथा किसानों का भरपूर शोषण आरम्भ हुआ। सन 1769 – 70 ई. के भयंकर अकाल (Drought)को अंग्रेजों कि इसी राजस्व नीति के परिणाम के रूप में देखा जाता है।

http://nokarino.com/2019/10/part-1goveror-general-of-bengal-gk-for.html

                    Lord Clive 1793 ई. में कार्नवालिस ने भू-राजस्व प्रबंधन(Land Revenue System) के लिए स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) को लागू किया। इसके द्वारा लागू किए गए भू-राजस्व सुधार के दो महत्वपूर्ण पहलू सामने आये:

  1. भूमि में निजी सम्पत्ति की अवधारणा को लागू करना, तथा
  2. स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement)
  • लॉर्ड कार्नवालिस की राजस्वा व्यवस्था (Land Revenue System) में मध्यस्थों और बिचौलियों (Middleman)को भूमि का स्वामी (It declared Zamindars as the Owner of the land)घोषित कर दिया गया।
  • दूसरी ओर, स्वतंत्र किसानों को अधीनस्थ रैय्यत के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और सामुदायिक सम्पत्ति को जमींदारों के निजी स्वामित्व में रखा गया।
  • भूमि को विक्रय योग्य बना दिया गया।
  • जमींदारों को एक निश्चित तिथि को भू-राजस्व सरकार को अदा करना होता था।
  • 1793 ई. के बंगाल रेग्युलेशन के आधार पर 1794 ई. में ‘सूर्यास्त कानून(Sunset Law ) लाया गया, जिसके अनुसार अगर एक निश्चित तिथि को सूर्यास्त होने तक जमींदार जिला कलेक्टर(District Revenue Collector) के पास भू-राजस्व की रकम जमा नहीं करता तो उसकी पूरी जमींदारी नीलाम हो जाती थी।
  • इसके बाद 1799 और 1812 ई. के रेग्युलेशन के आधार पर किसानों को पूरी तरह जमींदारों के नियंत्रण में कर दिया गया, अर्थात प्रवधान किया गया कि यदि एक निश्चित तिथि को किसान जमींदार को भू-राजस्व की रकम अदा नहीं करते तो जमींदार उनकी चल और अचल दोनों प्रकार की सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकता है।
  • इसका परिणाम हुआ कि भू-राजस्व कि रकम अधिकतम रूप में निर्धारित की गयीं तथा इसके लिए 1790 – 91 ई. के वर्ष को आधार वर्ष बनाया गया। इसका परिणाम यह हुआ की  1765 – 93 के बीच कंपनी ने बंगाल में भू-राजस्व की दर में दुगुनी बढ़ोतरी कर दी।
  • (Zamindars were free from tax and rent)लॉर्ड कार्नवालिस ने भू-राजस्व वसूली की स्थायी व्यवस्था लागू की। आरंभ में यह व्यवस्था (Land Revenue System) दस वर्ष के लिए लागू कि गयीं थी, किंतु 1793 ई. में इसे स्थायी बंदोबस्त में परिवर्तित कर दिया गया।
  • ब्रिटिश भारत के 19% भाग पर यह व्यवस्था थी। 
  • बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी तथा उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्र में लागू थी।इस व्यवस्था में जमींदारों को भूस्वामी के रूप में मान्यता दी गयीं।
  • स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) के अंतर्गत जमींदार अपने क्षेत्रों से भू-राजस्व की वसूली का 1/11 वां भाग अपने पास रखता था तथा शेष हिस्सा (10/11वां ) कंपनी के पास जमा कराता था।इस व्यवस्था के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि जमींदार कि मृत्यु के उपरांत उसकी भूमि उसके उत्तराधिकारियों में चल संपत्ति की भाँति विभाज्य होगी।कार्नवालिस ने 1794 ई. में ‘सूर्यास्त कानून’ बनाया।
  •   यह घोषित किया गया कि यदि पूर्व निर्धारित तिथि के सूर्यास्त तक सरकार को लगान नहीं दिया गया तो जमींदारी नीलाम हो जाएगी।

रैय्यतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System)

  • भू-राजस्व प्रबंधन के विषय में ब्रिटिश भारत में लागू की गयी स्थायी बंदोबस्त के बाद रैय्यतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System) दूसरी व्यवस्था थी, जिसके सूत्रधार थामस मुनरो और कैप्टन रीड थे।
  • रैय्यतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System) ब्रिटिश भारत के 51 % भाग (मद्रास बंबई के कुछ हिस्से, पूर्वी बंगाल, असम, कुर्ग) पर लागू की गई।
  • रैय्यतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System) के अंतर्गत रैय्यतों को भूमि का मालिकाना हक़ दिया गया, जिसके द्वारा ये प्रत्यक्ष रूप से सीधे या व्यक्तिगत रूप से भू-राजस्व अदा करने के लिए उत्तरदायी थे।
  • रैय्यतवाड़ी व्यवस्था (Ryotwari System) में किसान को 33 % से 55 % के बीच लगान कंपनी को अदा करना होता था। 1836 ई. के बाद विंगेर और गोल्डस्मिथ द्वारा इस व्यवस्था में सुधार किए गए।
  •  1792 ई. में कैप्टन रीड ने रैय्यतवाड़ी व्यवस्था को सर्वप्रथम तमिलनाडु के बारामहल जिले में लागू किया।
  • रैय्यतवाड़ी पद्धति को लागू करने के पीछे निम्नलिखित दो उद्देश्य थे:
  • राज्य की आय में वृद्धि
  • रैय्यतों की सुरक्षा
  • पहला उद्देश्य तो पूरा हुआ, लेकिन दूसरा उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता क्योकि शीघ्र ही किसानों ने ऐसा अनुभव किया कि कई जमीदारों के बदले अब राज्य सरकार ही बड़े जमींदार की भूमिका निभा रही थी। भू-राजस्व की राशि रैय्यतवाड़ी क्षेत्र में अधिकतम रूप में रखी गयी तथा उसका समय-समय पर पुनर्निरीक्षण किया गया।  
  • स्थिति यह थी कि किसान इतनी बड़ी राशि चुकाने में असमर्थ थे।
  • परिणामस्वरूप यह हुआ कि वे भू-राजस्व की रकम तथा अन्य आवश्यकताओ को पूरा करने हेतु महाजनो से कर्ज लेने लगे और ऋण जाल में फँसते चले गये। चूँकि भू-राजस्व अत्यधिक होने के कारण भूमि की ओर लोगों का आकर्षण कम हो गया।
  • अतः आंरभ में महाजनो ने भूमि अधिग्रहण के संबंध में रूचि कम दिखाई। परन्तु 1836 ई. के पश्चात बॉम्बे तथा 1855 ई. के बाद मद्रास प्रेसीडेन्सी में गैर-कृषक वर्ग का आकर्षण भूमि के प्रति बढ़ गया।
  • अब धीरे-धीरे भूमि का हस्तांतरण किसानों से महाजनो की ओर होने लगा। दूसरी ओर, रैय्यतवाड़ी क्षेत्र में कुछ समृद्ध किसानों ने भूमि को खरीदकर अपनी जोत को अत्यधिक बढ़ा लिया और वे फिर भूमिहीन कृषको को बटाई पर भूमि देने लगे।
  • इस स्थिति को कृत्रिम जमींदार वर्ग के उदय के रूप में देखा जाता है। Also

महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System)

  • यह राजस्व व्यवस्था (Land Revenue System) को महालवाड़ी व्यवस्था कहा जाता है इसका प्रस्ताव सर्वप्रथम ‘हॉल्ट मैकेंजी’ द्वारा लाया गया था।
  •  महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System) के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था।
  • लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा ‘महाल’ या ‘क्षेत्र‘ सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था।
  • महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System) के अंतर्गत छोटे व बड़े सभी स्तर के ज़मींदार आते थे। महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में ‘हॉल्ट मैकेंजी’ द्वारा लाया गया था।
  • महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System) 1822 ई. के रेग्यूलेशन-7 द्वारा क़ानूनी रूप प्रदान किया गया।महाल शब्द से तात्पर्य है जागीर अथवा गॉव।   
  • महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System) में राजस्व व्यवस्था प्रत्येक महल के साथ स्थापित की गई, कृषक के साथ नहीं। 
  • यह व्यवस्था गंगा की घाटी, उतर पश्चिमी प्रांतों, मध्य भारत के कुछ भागों तथा पंजाब में लागू की गई। 
  • महालवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भारत की भूमि का लगभग 30% भाग सम्मिलित था।इस व्यवस्था में प्रारम्भ में लगान की दर कुल उपज का 80% निश्चित की गई थी
  • बाद में लॉर्ड विलियम बैंटिकने मार्टिन बर्ड, जिन्हें उत्तरी भारत में भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक माना जाता है, के सहयोग से 1833 ई. का रेग्यूलेशन-9 पारित करवाया।
  • इसके अनुसार इस दर को कम करके 66% कर दिया गया।
  • 1855 ई. में पुन: सहारनपुर नियम के अनुसार लॉर्ड डलहौज़ीने लगान की दर को 50% निश्चित किया।
  • महालवाड़ी व्यवस्था (Mahalwari System) का परिणाम भी कृषकों के प्रतिकूल रहा, परिणामतस्वरुप  1857 ई. के विद्रोह में इस व्यवस्था से प्रभावित बहुत से लोगों ने हिस्सा लिया।
  • Also Read-  Attorney General of India, Supreme Court of India, Parliament of India -Lok Sahba, Rajya Sabha

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