संगम काल (SANGAM AGE)
(दक्षिण भारतीय राज्य)
दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग तीन सौ ईसा पूर्व से तीन सौ ईस्वी के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है।
संगम संस्कृत(Sanskrit) भाषा का शब्द है।
यह कृष्णा(Krishna) व् तुंगभद्रा (Tungbhadra)नदियों के मध्य में तमिल कवियों तथा विद्धानों का मिलन था।
जिस समय पुरे भारत में मौर्य बहुत बड़े साम्राज्य की स्थापना रहे थे उसी समय दक्षिण (Far in Southern India) के सुदूर क्षेत्र कृष्णा(Krishna) और तुंगभद्र(Tungbhadra) नदियों के आसपास तीन छोटे छोटे(Tiny) राज्य भी अस्तित्व में आये थे। ये थे – पांड्या , चोल और चेर।
इस काल के बारे में जानकारी उस समय हुई तीन संगमों से प्राप्त साहित्यिक कृतियों(Sangam Literature) से हुई।
इनका गठन पांड्या(Pandyas) राजाओं के सरंक्षण में किया गया था।
इनके सरंक्षण में तीन संगमों (Three Sangams were held)का गठन किया था।
संगम अध्यक्ष स्थान
प्रथम अगस्त्य मदुरै
द्धितीय तोल्काप्पियर कपटपूरम
तृतिया नक्कीरर उत्तरी मदुरै
Also read – Jainism, Budhism, Vedic Period, Vedic Literature, Indus Valley Civilization
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चेर वंश
चेर वंश ने केरल और तमिलनाडु (Kerala and Tamilnadu)में अपने साम्राज्य स्थापित किया।
चेर राज्य की राजधानी वंजी (Vanji) थी।
इनके मुख्य बंदरगाह मुजरिस(Muzris) और तोंदी (Tondi)थे।
चेरों के रोम साम्राज्य (Rome)के साथ व्यपारिक सम्बन्ध थे उन्होंने मुजरिस में अपने दो रेजिमेंट(Regiments) भी स्थापित किये।
चेर शासकों के शुरुआती शासक उडियंगेरल(Udiyangeral) भी इस वंश के सबसे काबिल शासकों में से एक था।
हालाँकि सबसे महान शासक सेनगुट्टुवन(Senguttuvan) था जिसे लाल चेर (Red Chera) भी कहा जाता था। यह कहा जाता है कि उसने उतरी भारत(Invaded North India) पर भी आक्रमण किया। चेर शासकों ने चोल शासकों(Cholas) के साथ लगभग 150 वर्षों तक लड़ाई लड़ी।
चोल वंश
चोल राज्य को चोलामंडलम या कोरोमंडल(Cholamandalam or Coromandal) भी कहा जाता है।
इस राज्य की राजधानी कवेरीपट्नम(Kaveripattnam) थी।
इसकी व्यापारिक राजधानी उरैयूर(Urriyar) थी जो की कपास (Cotton trade)के व्यापर के लिए प्रसिद्ध थी।
इस राज्य का धन का मुख्य स्त्रोत (Main source of wealth) सूती कपड़ो(Cotton Trade) का व्यापार था।
पुहार/कावेरीपट्नम इस राज्य के मुख्य बंदरगाह (Ports)थे।
इस राज्य में वर्तमान के तंजौर (Tanjore)और तिरुचिरापल्ली (Tiruchirapalli)ज़िले आते हैं।
चोल वंश के राजा ने श्रीलंका पर आक्रमण(Conquerred Sril Lanka) कर लगभग 50 वर्षों तक इसे अपने अधीन रखा।
कराईकल(Karaikala) इस वंश का सबसे महानतम राजा था जिसे की पुहार की स्थापना की तथा उसने पुहार में 12000 श्रीलंकाई दासों की मदद से तट बांध बनाये।
इनके पास एक अच्छी समुद्री सेना (Great Naval Army)थी।
उतर से पल्ल्वों (Pallavas)द्धारा किये आक्रमणों से चोल साम्राज्य का अंत हो गया।
पांड्या वंश
इस वंश की राजधानी मदुरै (Madurai)थी.
इस वंश का वर्णन सबसे पहले मेगस्थनीज़(Magasthanese) ने किया जिसमे बताया गया है की पांड्या वंश की राजधानी मोतियों (Famous for Pearls)के लिए प्रसिद्ध थी जिसका शासन स्त्री (Ruled by lady)द्वारा शासित किया जाता था ।
पांड्या शासकों के रोम शासकों (Rome)के साथ भी सम्बन्ध थे।
इन्होने रोम सम्राट अगस्त के दरबार में अपने राजदूत भेजे।
संगम साहित्य
इन वंशों के बारे में जितनी भी जानकारी मिलती संगम साहित्यों (Sangam Literature) से मिलती हैं।
‘सिलाप्पदिकरम (Silappaddikaram)जो की इलानो अडिगल(Ilano Adigal) (एक वैवाहिक दम्पति की कहानी) और मणिमेकलै कुरूल जिसे की पांचवा वेद(Fifth Veda) तथा तमिल प्रदेश की बाइबिल (Bible of Tamil land)भी कहा गया है की रचना तिरुवल्लुवर ने की।
यहाँ पर मुरुगन (Murugan)को मुख्य देवता के रूप पूजा जाता है ।
सटनर(Budha)लिखित मणिमेखले(Manimekhele) में माधवी एवं कोवलन से उत्पन्न पुत्री मणिमेखले और राजमुमार(Prince) उदय कुमारन के बीच में प्रेम सम्बन्धो (Love affairs)की चर्चा है।
तिरुक्तदेवर(Jain Monk) लिखित जीवक चिंतामणि में जीवक नामन योद्धा(Warrior) के अद्भुत कार्यों का वर्णन है।
तोलकप्पियम (Tollkapium) की रचना तोल्क्पिया (Tollkapiya) ने की थी।