Non-cooperation Movement- – असहयोग आंदोलन

Non-cooperation Movement – असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन का इतिहास History of Non-Cooperation movement in Hindi

असहयोग आंदोलन का इतिहास History of Non-Cooperation movement in Hindi

NON COOPERATION MOVEMENT
Non Cooperation Movement

दोस्तों आज हम बात करेंगे असहयोग आंदोलन के बारे में और जानेंगे कि असहयोग आंदोलन भारत के स्वतंत्र होने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुआ। महात्मा गांधी ने सन 1916 में एक नायक के रूप में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। सन 1919 तक वे सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर चुके थे। 

उनके अद्वितीय राजनैतिक विचार और प्रतिभा जो उनकी आध्यात्मिक विश्वास से उत्पन्न हुए थे, जिसने भारतीय राजनीति को बदल दिया और आम जनता की राजनैतिक चेतना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा शुरू किए गए कई आंदोलनो ने लोगों को भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

भारत की स्वतंत्रता के प्रयास में असहयोग आंदोलन, तीन सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन में से पहला था। अन्य दो ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ थे।

आज हम इसके के बारे में चर्चा करेंगे और इसके बारे में जानेंगे, तो शुरू करते है –

असहयोग आंदोलन में क्या था ख़ास –

  • असहयोग आंदोलन की विशेषता यह थी कि अंग्रेजों की क्रूरताओं के खिलाफ लड़ने के लिए शुरुआत में अहिंसक साधनों को अपनाया गया था.
  • इस आंदोलन को सस्फल बनाने के लिए देश भर में लाखों लोगों ने सरकारी काम छोड़ दिया.  सिविल सेवाओं, सेना, पुलिस, अदालतों, विधान परिषदों और  स्कूलों आदि से देश वासियों ने इस्तीफा दे दिया और क्रांति की आग में वो भी कूद गए. इसके साथ ही विदेशी वस्तुओं का  बहिष्कार किया  गया. 
  • शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया और विदेशी कपड़ो की होली जलाई गयी.
  • मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, सी. राजगोपालाचारी और आसफ अली जैसे कई वकीलों ने अपनी प्रैक्टिस छोड़ दी, उन्होंने अंग्रेजों के  लिए केस लड़ने बंद कर दिए. 
  • इसका परिणाम यह हुआ की विदेशी कपड़े का आयात 1920 और 1922 के बीच बहुत गिर गया.
  • जैसे-जैसे यह आंदोलन फैलता गया, लोगों ने सभी आयत की जाने वाली वस्तुओं का बहिष्कार किया और  त्यागना शुरू कर दिया और केवल भारतीय वस्तुओं का प्रयोग शुरू कर दिया, जिससे भारतीय कपड़ा मिलों और हैंडलूमों का उत्पादन बढ़ गया.

आंदोलन का कारण Cause movement

अँग्रेज़ सरकार की लगातार बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के उद्देश्य से महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी। क्योंकि सन 1919 में ब्रिटिश सरकार ने एक नया नियम पारित किया था, जिसे रौलट एक्ट कहा गया, इस अधिनियम के अनुसार, ब्रिटिश सरकार के पास लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार था और उन्हें राज-विरोधी गतिविधियों का संदेह होने पर बिना किसी मुकदमे के जेलों में रखने की शक्ति थी। 

सरकार ने समाचार पत्रों पर भी अधिकार रख लिया और साथ ही रिपोर्टिंग और प्रिंटिंग समाचारों से मुकरने की भी शक्ति अपने पास रखी। इसके विरोध के उद्देश्य से असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में पारित हुआ था। 

इसका उद्देश्य भारत से उपनिवेशवाद को खत्म करना था, और सब से आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएँ तथा न ही कर चुकाएँ। संक्षेप में कहा जाये तो सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ सभी ऐच्छिक संबंधों के त्यागने के लिए कहा गया।

प्रथम विश्व युद्ध ने देश में एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का निर्माण किया. रक्षा व्यय में भारी वृद्धि की गई, सीमा शुल्क बढ़ाया गया और आयकर पेश किया गया. 1913 और 1918 के बीच के वर्ष के दौरान कीमतें बढ़कर दोगुनी हो गईं, जिससे आम लोगों के लिए अत्यधिक कठिनाई हुई. भारत के कई हिस्सों में फसल खराब हुई, जिसके परिणामस्वरूप भोजन की भारी कमी हो गई, स्थिति आकाल जैसी हो गई. इस समय एक इन्फ्लूएंजा महामारी भी फ़ैल गई. युद्ध समाप्त होने के बाद भी, लोगों की कठिनाई जारी रही और अंग्रेजों द्वारा कोई मदद नहीं की गई. जिसकी वजह से देश में उनका विरोध करने  का फैसला  लिया गया.

नागपुर अधिवेशन Nagpur Adhiveshan

Non cooperation movement
Non Cooperation Movement

स्वतंत्रता प्राप्ति में काँग्रेस के नागपुर अधिवेशन का विशेष महत्व है, क्योंकि इस अधिवेशन में असहयोग के प्रस्ताव की पुष्टि के साथ ही दो और महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये थे। पहले निर्णय के अनुसार काँग्रेस ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन का अपना लक्ष्य त्याग कर, ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर स्वराज का लक्ष्य घोषित किया था।

दूसरे निर्णय के अनुसार काँग्रेस ने रचनात्मक कार्यक्रमों की एक सूची तैयार की जो निम्न है –

भाषा के आधार पर प्रांतीय काँग्रेस समितियों का गठन

सभी वयस्कों को काँग्रेस का सदस्य बनाना

तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय काँग्रेस समिति का गठन

स्वदेशी हाथ करघा को प्रोत्साहन

राष्ट्रीय विद्यालयों तथा पंचायती अदालतों की स्थापना

अस्पृश्यता का अंत, हिन्दू –मुस्लिम एकता पर ज़ोर

यथासंभव हिन्दी का प्रयोग आदि 

नकारात्मक कार्यक्रमों में मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार थे Major programs

सरकारी उपाधियों प्रशस्ति पत्रों को लौटाना।

सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों, विदेशी कपड़ों आदि का बहिष्कार

सरकारी उत्सवों समारोहों तथा स्वदेशी का प्रचार

अवैतनिक पदों से तथा स्थानीय निकायों के नामांकित पदों से त्याग पत्र देना।

विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा स्वदेशी का प्रचार।

नागपुर अधिवेशन के बाद स्वराज के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, काँग्रेस ने अब केवल संवैधानिक उपायों के स्थान पर सभी शांतिमय और उचित उपाय अपनाये जिसमें केवल आवेदन और अपील भेजना ही शामिल नहीं था, अपितु सरकार को कर देने से मना करने जैसी सीधी कार्यवाही भी शामिल थी।

आंदोलन की प्रगति Movement progress

आंदोलन शुरू करने से पहले गांधी जी ने प्राप्त कैसर-ए-हिन्द पुरस्कार को लौटा दिया, अन्य सैकड़ों लोगों ने भी गांधी जी के पद चिह्नों पर चलते हुए अपनी प्राप्त पदवियों एवं उपाधियों को त्याग दिया। राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित जमनालाल बजाज ने भी यह उपाधि अँग्रेज़ सरकार को वापस कर दी। 

पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आंदोलन को अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि की स्थापना की गईं।

शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार Boycott of educational institutions

असहयोग आंदोलन के दौरान शिक्षण संस्थाओं का सबसे ज्यादा विरोध बंगाल में हुआ। सुभाष चन्द्र बोस नेशनल कॉलेज कलकत्ता के प्रधानाचार्य बने। पंजाब में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बहिष्कार किया गया। 

वकालत का बहिष्कार करने वाले वकीलों में प्रमुख बंगाल के देशबन्धु चित्तरंजन दास, उत्तर प्रदेश के मोतीलाल नेहरू एवं जवाहरलाल नेहरू, गुजरात के विट्ठलभाई पटेल एवं वल्लभ भाई पटेल, बिहार के राजेन्द्र प्रसाद, मद्रास के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एवं दिल्ली के आसिफ़ अली आदि थे। 

गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के ख़र्च की पूर्ति के लिए काँग्रेस ने असहयोग के कार्यक्रम में 31 मार्च, 1921 को विजयवाङा में हुए काँग्रेस अधिवेशन में तिलक स्मारक के लिए स्वराज कोष के रूप में एक करोङ रूपये एकत्र करना तथा समूचे भारत में करीब 20 लाख चर्खे बंटवाने का कार्यक्रम भी शामिल कर लिया।

आंदोलन का चरमोत्कर्ष End of the Andolan

1921 ई. में असहयोग आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था। सरकार ने असहयोग आंदोलन को कुचलने के लिए हर संभव प्रयास किया। 4 मार्च, 1921 ई. को ननकाना के एक गुरुद्वारे, जहाँ पर शाँतिपूर्ण ढंग से सभा का संचालन किया जा रहा था, पर सैनिकों के द्वारा गोली चलाने के कारण 70 लोगों की जानें गई। 

1921 ई. में लॉर्ड रीडिंग के भारत के वायसराय बनने पर असहयोग आंदोलन को तेजी से दवाने का प्रयास किया गया। कई नेताओं को गिरफ़्तार किया गया। मोहम्मद अली पहले नेता थे, जिन्हें सर्वप्रथम ‘असहयोग आंदोलन’ में गिरफ़्तार किया गया।

प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार Prince of Wales boycotted

जब अप्रैल, 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आये तो उनका सभी जगह काला झण्डा दिखा कर स्वागत किया गया। गांधी जी ने अली बंधुओं की रिहाई न किये जाने के कारण प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन का बहिष्कार किया। 

इसी बीच दिसम्बर, 1921 में अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। यहाँ पर असहयोग आंदोलन को तेज़ करने एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने की योजना बनी। 

आंदोलन समाप्ति का निर्णय Decision to end the movement

किन कारणों से यह आन्दोलन वापस लेना पड़ा

असहयोग आंदोलन 1921 तक पूरे जोरों पर था, जिससे समाज के सभी वर्ग आंदोलन में शामिल हो रहे थे. गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे इस आन्दोलन ने अंग्रेजों के शासन प्रणाली की जड़े हिला दी. पर इसी दौरान कुछ ऐसी घटनाएँ हुई जिसकी वजह से गाँधी जी को यह आन्दोलन बीच में ही रोकना पड़ा. 

देश के विभिन्न हिस्सों में इस आन्दोलन के साथ हिंसा भी की गई,पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, जिसमें सबसे बड़ी घटना चौरी चौरा कांड थी. 5 फरवरी 1922 को नाराज किसानों ने यूपी के चौरी चौरा में एक स्थानीय पुलिस स्टेशन पर हमला किया. इस घटना में दो पुलिसकर्मी मारे गए. इस समय किसानों को उकसाया गया क्योंकि पुलिस ने उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोलीबारी की थी. इसके चलते गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया.

इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। हिंसा की इस घटना के बाद गांधी जी ने यह आंदोलन तत्काल वापस ले लिया। 12 फरवरी, 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक, में असहयोग आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया और आंदोलन समाप्त हो गया।

जिस समय जनता का उत्साह अपने चरम बिंदु पर था, उस समय गांधी जी द्वारा आंदोलन को वापस लेने के निर्णय से देश को आघात पहुंचा। मोतीलाल नेहरू,सुभाषचंद्र बोस,जवाहरलाल नेहरू, सी.राजगोपालाचारी,सी आर.दास, अली बंधु आदि ने गांधी के इस निर्णय की आलोचना की। आंदोलन के स्थगित करने का प्रभाव गांधी जी की लोकप्रियता पर पड़ा। 

13 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया तथा न्यायाधीश ब्रूम फ़ील्ड ने गांधी जी को अंसतोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उन्हें 5 फ़रवरी 1924 को रिहा कर दिया गया।

असहयोग आंदोलन परिणाम Result of the Non-Cooperation Movement

खिलाफत और असहयोग आंदोलन हिन्दू और मुसलमानों को नज़दीक लाने में प्रभावकारी सिद्ध हुए। मुसलमानों ने कट्टर आर्य समाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को जामा मस्जिद से भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। दूसरी ओर सिखों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की चाभियां मुसलमान नेता डॉ. किचलू को सौंप दी। 

इस आंदोलन का विशेष प्रभाव पड़ा अब तक अँग्रेज़ सरकार को भारतीयों की ताकत का अंदाजा हो चुका था, और साथ ही अंग्रेज सरकार यह मान चुकी थी की उसे जल्दी ही भारत छोड़ना पड़ सकता है, इस आंदोलन से अँग्रेज़ सरकार की नींव हिल चुकी थी।

यह आंदोलन स्वतंत्रता प्राप्ति में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसके कारण 15 अगस्त 1947 को हमे स्वतंत्रता प्राप्त हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति में क्रांतिकारियों द्वारा दिए गये सहयोग का ही नतीज़ा है कि आज हम एक स्वतंत्र भारत में रहते है।       

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